श्रीमद्भगवद्गीता तत्त्वविवेचनी हिन्दी-टीका -जयदयाल गोयन्दका
दशम अध्याय
उच्चै: श्रवसमश्वानां विद्धि माममृतोद्भवम् ।
उत्तर- उच्चैःश्रवा की उत्पत्ति अमृत के लिये समुद्र का मन्थन करते समय अमृत के साथ हुई थी। अतः यह चौदह रत्नों में गिना जाता है और समस्त घोड़ों का राजा समझा जाता है। इसीलिये इसको भगवान् ने अपना स्वरूप बतलाया है। प्रश्न- गजेन्द्रों में ऐरावत नामक हाथी को अपना स्वरूप बतलाने का क्या अभिप्राय है? उत्तर- बहुत-से हाथियों में जो श्रेष्ठ हो, उसे गजेन्द्र कहते हैं। ऐसे गजेन्द्रों में भी ऐरावत हाथी, जो इन्द्र का वाहन है, सर्वश्रेष्ठ और ‘गज’ जाति का जारा माना गया है। इसकी उत्पत्ति भी उच्चै:श्रवा घोड़े की भाँति समुद्र मन्थन से ही हुई थी। इसलिये इसको भगवान् ने अपना स्वरूप बतलाया है। प्रश्न- मनुष्यों में राजा को अपना स्वरूप कहने का क्या अभिप्राय है? उत्तर- शास्त्रोक्त लक्षणों से युक्त धर्मपरायण राजा अपनी प्रजा को पापों से हटाकर धर्म में प्रवृत्त करता है और सबकी रक्षा करता है, इस कारण अन्य मनुष्यों से राजा श्रेष्ठ माना गया है। ऐसे राजा में भगवान् की शक्ति साधारण मनुष्यों की अपेक्षा अधिक रहती है। इसीलिये भगवान् ने राजा को अपना स्वरूप कहा है। प्रश्न- साधारण राजाओं को न लेकर यहाँ यदि प्रत्येक मन्वन्तर में होने वाले मनुओं को ले जो अपने-अपने समय के मनुष्यों के अधिपति होते हैं, तो क्या आपत्ति है? इस मन्वन्तर के लिये प्रजापति ने वैवस्वत मनु को मनुष्यों का अधिपति बनाया था, यह कथा प्रसिद्ध है। उत्तर- कोई आपत्ति नहीं है। वैवस्वत मनु को भी ‘नराधिप’ माना जा सकता है। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ वायुपुराण 70। 18
संबंधित लेख
क्रम संख्या | विषय | पृष्ठ संख्या |
वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज