श्रीमद्भगवद्गीता तत्त्वविवेचनी हिन्दी-टीका -जयदयाल गोयन्दका
दशम अध्याय
उत्तर- जो सर्व प्रकार की स्थूल और सूक्ष्म जगत् की सिद्धियों को प्राप्त हों तथा धर्म, ज्ञान, ऐश्वर्य और वैराग्य आदि श्रेष्ठ गुणों से पूर्णतया सम्पन्न हों, उनको सिद्ध कहते हैं। ऐसे हजारों सिद्ध हैं जिनमें भगवान् कपिल सर्वप्रधान हैं। भगवान् कपिल साक्षात् ईश्वर के अवतार हैं। महायोगी कर्दम मुनि की पत्नी देवहूति को ज्ञान प्रदान करने के लिये इन्होंने उन्हीं के गर्भ से अवतार लिया था। इनके प्राकट्य के समय स्वयं ब्रह्मा जी ने आश्रम में आकर श्रीदेवहूति जी से कहा था- अयं सिद्धगणाधीशः साङ्ख्याचायैः सुसम्मतः। ‘ये सिद्धगणों के अधीश्वर और सांख्य के आचार्यों द्वारा पूजित होकर तुम्हारी कीर्ति को बढ़ावेंगे और लोक में ‘कपिल’ नाम से प्रसिद्ध होंगे।’ ये स्वभाव से ही नित्य ज्ञान, ऐश्वर्य, धर्म और वैराग्य आदि गुणों से सम्पन्न हैं। इनकी बराबरी करने वाला भी दूसरा कोई सिद्ध नहीं है, फिर इनसे बढ़कर तो कोई हो ही कैसे सकता है? इसलिये भगवान् ने समस्त सिद्धों में कपिल मुनि को अपना स्वरूप बतलाया है। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ श्रीमद्भागवत् 3। 24। 19
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