षष्ठ अध्याय
प्रश्न- अन्तःकरण की शुद्धि के लिये ध्यानयोग का अभ्यास करना चाहिये, इस कथन का क्या अभिप्राय है?
उत्तर- इसका अभिप्राय यह है कि ध्यानयोग के अभ्यास का उद्देश्य किसी प्रकार की सांसारिक सिद्धि या ऐश्वर्य को प्राप्त करना नहीं होना चाहिये। एकमात्र परमात्मा को प्राप्त करने के उद्देश्य से ही अन्तःकरण में स्थित राग-द्वेष आदि अवगुणों और पापों का तथा विक्षेप एवं अज्ञान का नाश करने के लिये ध्यानयोग का अभ्यास करना चाहिये।
प्रश्न- योग का अभ्यास करना क्या है?
उत्तर- उपर्युक्त प्रकार से आसर पर बैठकर, अन्तःकरण और इन्द्रियों की क्रियाओं को वश में रखते हुए और मन को परमेश्वर में लगाकर निरन्तर अविच्छिन्नभाव से परमात्मा का ही चिन्तन करते रहना-यही ‘योग’ का अभ्यास करना है।
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