श्रीमद्भगवद्गीता तत्त्वविवेचनी हिन्दी-टीका -जयदयाल गोयन्दका
अष्टादश अध्याय
सम्बन्ध- इस प्रकार भगवान् के पूछने पर अब अर्जुन भगवान् से कृतज्ञता प्रकट करते हुए अपनी स्थिति का वर्णन करते हैं- अर्जुन उवाच
उत्तर- भगवान् को ‘अच्युत’ नाम से सम्बोधित करके यहाँ अर्जुन ने यह भाव दिखलाया है कि आप साक्षात् निर्विकार परब्रह्म, परमात्मा, सर्वशक्तिमान, अविनाशी परमेश्वर हैं- इस बात को अब में भली-भाँति जान गया हूँ। प्रश्न- ‘आपकी कृपा से मेरा मोह नष्ट हो गया’ इस कथन का क्या भाव है? उत्तर- इससे अर्जुन ने कृतज्ञता प्रकट करते हुए भगवान् के प्रश्न का उत्तर दिया है। अर्जुन के कहने का अभिप्राय यह है कि आपने यह दिव्य उपदेश सुनाकर मुझ पर बड़ी भारी दया की है, आपके उपदेश को सुनने से मेरा अज्ञानजनित मोह सर्वथा नष्ट हो गया है अर्थात् आपके गुण, प्रभाव, ऐश्वर्य और स्वरूप् को यथार्थ न जानने के कारण जिस मोह से व्याप्त होकर मैं आपकी आज्ञा को मानने के लिये तैयार नहीं होता था[1] और बन्धुबान्धवों के विनाश का भय करके शोक से व्याकुल हो रहा था[2]- वह सब मोह अब सर्वथा नष्ट हो गया है। प्रश्न- ‘मैंने स्मृति प्राप्त कर ली है’ इस कथन का क्या भाव है? उत्तर- इससे अर्जुन ने यह भाव दिखलाया है कि मेरा अज्ञानजनित मोह नष्ट हो जाने से मेरे अन्तःकरण में दिव्यज्ञान का प्रकाश हो गया है; इससे मुझे आपके गुण, प्रभाव, ऐश्वर्य और स्वरूप की पूर्ण स्मृति प्राप्त हो गयी है और आपका समग्ररूप मेरे प्रत्यक्ष हो गया है- मुझे कुछ भी अज्ञात नहीं रहा है। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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