श्रीमद्भगवद्गीता तत्त्वविवेचनी हिन्दी-टीका -जयदयाल गोयन्दका
अष्टादश अध्याय
उत्तर- इससे अर्जुन ने यह भाव प्रकट किया है कि अब आपके गुण, प्रभाव, ऐश्वर्य और सगुण-निर्गुण, साकार-निराकारस्वरूप के विषय में तथा धर्म-अधर्म और कर्तव्य-अकर्तव्य आदि के विषय में मुझे किंचिन्मात्र भी संशय नहीं रहा है। मेरे सब संशय नष्ट हो गये हैं तथा समस्त संशयों का नाश हो जाने के कारण मेरे अन्तःकरण में चंचलता का सर्वथा अभाव हो गया है। प्रश्न- ‘मैं आपकी आज्ञा का पालन करूँगा’ इस कथन का क्या भाव है? उत्तर- इससे अर्जुन ने यह भाव दिखलाया है कि आपकी दया से मैं कृतकृत्य हो गया हूँ, मेरे लिये अब कुछ भी कर्तव्य शेष नहीं रहा; अतएव आपके कथनानुसार लोकसंग्रह के लिये युद्धादि समस्त कर्म जैसे आप करवावेंगे, निमित्तमात्र बनकर लीलारूप से मैं वैसे ही करूँगा। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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