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अष्टादश अध्याय
प्रश्न- वह बुद्धि राजसी है, इस कथन का क्या अभिप्राय है?
उत्तर- इस कथन से यह भाव दिखलाया गया है कि जिस बुद्धि से मनुष्य धर्म-अधर्म का और कर्तव्य-अकर्तव्य का ठीक-ठीक निर्णय नहीं कर सकता, जो बुद्धि इसी प्रकार अन्यान्य बातों का भी ठीक-ठीक निर्णय करने में समर्थ नहीं होती- वह रजोगुण के सम्बन्ध से विवेक में अप्रतिष्ठित, विक्षिप्त और अस्थिर रहती है; इसी कारण वह राजसी है। राजस भाव का फल दुःख बतलाया गया है; अतएव कल्याण कामी पुरुषों को सत्संग, सद्ग्रन्थों के अध्ययन और सद्विचारों के पोषण द्वारा बुद्धि में स्थित राजस भावों का त्याग करके सात्त्विक भावों को उत्पन्न करने और बढ़ाने की चेष्टा करनी चाहिये।
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