भागवत सुधा -करपात्री महाराजगुरु-शिष्य ‘हम फाँसी पर चढ़ेगे, हम फाँसी पर चढेंगे।’ कहकर झगड़ने लगे। दोनों को बुलाया गया। राजा के सम्मुख पेश किया गया। राजा ने पूछा- ‘‘क्या बात है भाई, फाँसी तो खराब होती है, तुम दोनों फाँसी के लिए क्यों झगड़ते हो?’’ गुरु-शिष्य ने कहा- ‘‘महाराज! आज जो फाँसी पर चढेंगा, बस उसी को अखण्ड भू-मण्डल का राज्य प्राप्त होगा।’’ राजा ने कहा- ‘तुम दोनों हटो, हम फाँसी पर चढे़ंगे।’ यह है ‘अन्धेर नगरी चौपट राजा’ की बात। तो भाई! यहाँ पूतना को भी वही आत्मसमर्पण और इन भक्तों को जिन्होंने सर्वस्व आपके चरणों में अर्पण कर रखा है, उनको भी वही आत्मसमर्पण। यह तो गलत है। ऐसे करुणावरुणालय हैं श्री भगवान आनन्दकन्द परमानन्द श्रीकृष्ण चन्द्र मदन मोहन। ‘अहो वकी यं’’ इस श्लोक को सुनकर श्री शुकदेव जी को आश्वासन हुआ। उन्होंने बालकों से पूछा- ‘तुमने कह श्लोक कहाँ से याद किया है? बालकों ने कहा- ‘‘हमारे गुरुदेव श्री व्यास भगवान ने एक अष्टादश सहस्र श्लोकों की महासंहिता रची है। ये श्लोक उसी के हैं।’’ विद्यार्थियों के मुख से श्रीमद्भागवत के इन श्लोकों को सुनकर परमहंस जी की श्रीमद्भागवत के अध्ययन में प्रीति और प्रवृत्ति हुई। अध्ययन करने में एक दूसरा भी हेतु था। भगवान शुकदेव जी को सर्वदा विष्णुभक्तों का संग प्रिय था। श्रीमद्भागवत वैष्णवों का परम धन है। इसके कारण उन्हें सदा ही वैष्णवों का सहवास प्राप्त होता रहेगा। इस दृष्टिकोण से भी उन्होंने इसका अध्ययन किया। ऐसे सर्वभूतहृदय परमहंस श्रीशुकदेव की वन्दना सूत जी ने की। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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