भागवत सुधा -करपात्री महाराजमेरे मामा पण्डित पद्यनाभ मिश्र, जो काशी के प्रख्यात विद्वान पण्डित श्री चन्द्रधर शर्मा के साथी थे और स्वयं दूध-दही पर अपना जीवन व्यतीत करते थे एवं बड़े मस्त प्रकृति के थे, उन्होंने हम को बुलाया और पूछा कहाँ जा रहे हो? हम लोगों ने उस युवा अवधूत की महिमा सुनाई। ‘तुम लोग थोड़े दिन ठहर जाओ। पहले हम देख लेंगे, फिर जाने देंगे।’ मामा जी बोले- हमारा दर्शन तो प्रतिबद्ध हो गया, किन्तु मूल में लालसा बनी रही। थोड़े दिनों बाद श्री करपात्री जी महाराज ने दण्ड ग्रहण कर लिया। दिग-दिगन्त में उनके पाण्डित्य का प्रकाश व्याप्त होने लगा। हमें ज्ञात हुआ कि वे नरवर के षड्दर्शनाचार्य स्वामी श्री विश्वेश्वराश्रम से विद्याध्ययन कर चुके हैं, श्री उड़िया बाबा जी महाराज से सत्संग करते रहे हैं एवं श्री ब्रह्मानन्द सरस्वती महाराज से सत्संग करते रहे हैं एवं श्री ब्रह्मानंद सरस्वति महाराज से[1] दण्ड ग्रहण किया है। वे सनातन धर्म की पद्धति के पूर्ण समर्थक हैं एवं शास्त्रों के अक्षर, पंक्ति मात्र में निष्ठा रखते हैं तथा अपनी अद्भुत प्रतिभा एवं प्रसन्न-गम्भीर विद्या के द्वारा सबका समवन्य करते हैं, युक्तियुक्त सिद्ध करते हैं। अब उनके दर्शन की उत्कण्ठा अधिकाधिक प्रबल होने लगी। |
संबंधित लेख
क्रमांक | पाठ का नाम | पृष्ठ संख्या |
- ↑ तब तक वे ज्योतिष-पीठाधीश्वर नहीं हुये थे
वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज