भागवत सुधा -करपात्री महाराजबोले- ‘गुरु जी! इसलिए खाते हैं कि हमारे टोला में- पड़ोस में कोई गुण्डा माँ, बहिन, बेटियों की इज्जत आबरू नष्ट करने की कोशिश करेगा तो हम उसका सिर तोड़ देंगे। भिड़न्त करेंगे। इसलिए हम बादाम घोटते हैं।’ हमने कहा- ‘शाबाश? खूब बादाम पियो, खूब मक्खन खाओ। यह बड़ा पुण्य है, क्योंकि उद्देश्य पवित्र है।’ किसी दूसरे से पूछा- ‘तुम मक्खन क्यों खाते हो?’ कहा- गुरु जी! पड़ोसियों का सिर तोड़ने के लिए।’ हमने कहा- ‘ऐसा बादान खाना तो पाप है। उद्देश्य ही तुम्हारा गलत है।’ इसलिए उद्देश्य अच्छा हो। हम भोजन भी करें, पानी भी पीयें, कुछ भी करें, उद्देश्य है शरीर स्वस्थ रहे, भगवद् भजन करें, भगवान का ध्यान करें’ समाधि करें, भगवत्पद प्राप्ति के लिए प्रयत्नशील हों। इस ढंग से भोजन करना भी भजन है। पानी पीना भी भजन है। भोजन सामग्री उपार्जन करना भी भजन है। उद्देश्य हमारा भगवत्पद प्राप्ति हो। इस तरह काम का फल इन्द्रिय-तर्पण नहीं, बल्कि जीवन-यापक ही है।
बोले- फिर जीवन का फल क्या है? लोग तो यही मानते हैं कि जीवन का फल आनन्द लेना-मौज लेना-मजा लेना ही है। जब तक जियो मजा लो। विविध प्रकार के कर्मों को करते रहें और कर्मजा सिद्धियों को ही भोगते रहो। बस, यही है जीवन-सम्पादन का फल। परन्तु ऐसा नहीं। जीवन का फल है तत्त्व जिज्ञासा। जीवन इसलिए कि तत्त्वजिज्ञासा करो। बड़े भाग्य हैं उसके जिसके हृदय में तत्त्व जिज्ञासा होती है। हर-एक को तत्त्व-जिज्ञासा नहीं होती। दुनियाँ की जिज्ञासा होती है। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ उनसे
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