विषय सूची
ब्रह्म वैवर्त पुराण
श्रीकृष्ण जन्म खण्ड (उत्तरार्द्ध): अध्याय 93
उद्धव ने कहा- देवि! मैं समझ गया। तुम देवांगनाओं की अधीश्वरी, परम कोमल, सिद्धयोगिनी, सर्वशक्तिस्वरूपा, मूलप्रकृति, ईश्वरी और गोलोक की सुंदरी हो; श्रीदाम के शाप से तुम भूतल पर अवतीर्ण हुई हो। देवि! तुम श्रीकृष्ण की प्राणप्रिया तथा उनके वक्षःस्थल पर निवास करने वाली हो। देवि! मैं हृदय को स्निग्ध करने वाली अभीष्ट शुभवार्ता का वर्णन करता हूँ; तुम उसे सखियों के साथ सुस्थिर चित्त से श्रवण करो। वह वार्ता दुःखरूपी दावाग्नि में झुलसी हुई के लिए अमृत की वर्षा के समान तथा विरहव्याधि ग्रस्ता के लिए उत्तम रसायन के सदृश है। नन्द जी सदा प्रसन्न हैं। उन्हें वसुदेव ने निमन्त्रित कर रखा है; अतः वे वहाँ आनन्दपूर्वक श्रीकृष्ण के उपनयन-संस्कार तक ठहरेंगे। उस मंगल-कार्य के सांगोपांग संपन्न हो जाने पर परमानन्द-स्वरूप नन्द जी बलराम और श्रीकृष्ण को साथ लेकर हर्षपूर्वक गोकुल को लौटेंगे। उस समय श्रीकृष्ण आकर प्रसन्नता के साथ पुनः माता को प्रणाम करेंगे और रात में हर्षपूर्वक इस पुण्यमय वृन्दावन में पधारेंगे। सती राधिका! तुम शीघ्र ही श्रीकृष्ण के मुख कमल का दर्शन करोगी। उस समय तुम्हारा सारा विरह दुख दूर हो जाएगा। अतः मातः! तुम अपने चित्त को स्थिर करो और इस अत्यंत दारुण शोक को त्याग दो। पुनः प्रसन्नतापूर्वक अग्नि में तपाकर शुद्ध किए हुए रमणीय वस्त्र पहनकर अमूल्य रत्नों के बने हुए आभूषणों को धारण कर लो। कस्तूरी और कुंकुम से युक्त चिकने चन्दन को शरीर पर लगा लो और मालती की मालाओं से विभूषित करके केशों का श्रृंगार करो। कल्याणि! इस प्रकार सुन्दर वेष बनाकर कपोलों पर पत्र-भंगी (सौंदर्यवर्धक विचित्र पत्रावली) कर लो। माँग में कस्तूरी-चन्दनयुक्त सिन्दूर भर लो और बेंदी लगा लो। पैरों में मेंहदी लगाकर उसे महावर से रँग लो। सति! शोक के साथ-साथ इस की चड़युक्त कमल पुष्पों की शय्या को त्याग दो और उठो। इस उत्तम रत्नसिंहासन पर बैठो। मन-ही-मन श्रीकृष्ण के साथ विशुद्ध एवं मधुर मधुमय पदार्थ खाओ, संस्कारयुक्त स्वच्छ जल पीओ और सुवासित पान का बीड़ा चबाओ। देवेशि! तत्पश्चात जिस पर अग्नि-शुद्ध वस्त्र बिछा है; जो मालती की मालाओं से सुशोभित, कस्तूरी, जाती, चम्पा और चन्दन की सुगन्ध से सुवासित, चारों ओर से मालती की मालाओं और हीरों के हारों से विभूषित एवं सुंदर-सुंदर मणियों, मोतियों और माणिक्यों से परिष्कृत है; जिसके उपधान (तकिया) में पुष्पों की मालाएँ लटक रही हैं और जो सब तरह से मंगल के योग्य है; उस अमूल्य रत्नों द्वारा निर्मित परम मनोहर पलंग पर सदा गोपियों द्वारा सेवित होती हुई हर्षपूर्वक शयन करो। मनोहरे! तुम्हारी प्रिय सखी एवं भक्त गोपी निरन्तर तुम पर श्वेत चँवर डुलाती रहती है और तुम्हारे चरणकमलों की सेवा करती है। मुने! इतना कहकर तथा ब्रह्मा आदि देवताओं द्वारा वन्दित उनके चरण कमलों को प्रणाम करके उद्धव चुप हो गये। उद्धव के मधुर वचनों को सुनते ही सती राधिका के मुख पर मुस्कराहट छा गयी और उन्होंने उद्धव को अमूल्य दिव्य वस्त्राभूषण, रत्न, हार, भोजन, जल, ताम्बूल आदि देकर आशीर्वाद दिया। फिर, श्रीकृष्णवर्णित ज्ञान का उपदेश किया तथा लक्ष्मी, विद्या, कीर्ति, सिद्धि के साथ ही श्रीहरि के दास्य, श्रीहरि के चरणों में निश्चला भक्ति और श्रेष्ठतम पार्षद-पद की प्राप्ति का वरदान किया। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख
अध्याय | विषय | पृष्ठ संख्या |