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ब्रह्म वैवर्त पुराण
श्रीकृष्ण जन्म खण्ड (उत्तरार्द्ध): अध्याय 85
जो शिव का द्वेषी तथा देव-प्रतिमा पर चढ़े हुए द्रव्य से जीविका-निर्वाह करने वाला है, वह सात जन्म तक मुर्गा होता है। जो अज्ञानी पितरों और देवताओं के वेदोक्त पूजन का विनाश करता है, वह पापी रौरव नरक में जाता है। वहाँ एक हजार वर्ष तक यातना भोगने के पश्चात तीन जन्मों तक तीर्थकाक होता है। फिर तीन जन्मों तक किसी तीर्थ में सियार की योनि में उत्पन्न होकर मुर्दे की लाश खाता है। व्रजेश्वर! वही पापी तीन जन्मों तक तीर्थों में शव की रक्षा तथा कर्मानुसार मुर्दों की कफ़नखसोटी करता है। जो मूर्ख नित्य दम्भपूर्वक देवता की पूजा करके भक्तिपूर्वक गुरु का पूजन नहीं करता और न उन्हें अन्न दान करता है; वह पापी देवता के शाप से दुःखी, देवल (देवप्रतिमा पर चढ़े हुए द्रव्य से जीविका चलाने वाला) और भयंकर देवद्रोही होता है; उसे पूजा का फल नहीं मिलता। व्रजेश्वर! (हाथ से) दीप को बुझाने वाला सात जन्मों तक जुगुनू होता है। जो इष्टदेव को निवेदन किए बिना ही खाता है तथा मछली का अत्यंत लोभी है; वह मछरंगा पक्षी होता है तथा सात जन्मों तक बिलाव की योनि में जन्म धारण करता है। बोरा चुराने वाला कबूतर, माला हरण करने वाला आकाशचारी पक्षी, धान्य की चोरी करने वाला गौरैया और मांसचोर हाथी होता है। विद्वानों के कवित्व पर प्रहार करने वाला सात जन्म तक मेढक होता है। जो झूठे ही अपने के विद्वान कहकर गाँव की पुरोहिती करता है; वह सात जन्मों तक नेवला, एक जन्म में कोढ़ी और तीन जन्मों तक गिरगिट होता है। फिर एक जन्म में बर्रै होने के बाद वृक्ष की चीटीं होता है। तत्पश्चात क्रमशः शूद्र, वैश्य, क्षत्रिय और ब्राह्मण होता है। चारों वर्णों में कन्या बेचने वाला मानव तामिस्र नरक में जाता है और वहाँ तब तक निवास करता है, जब तक सूर्य-चंद्रमा की स्थिति रहती है। इसके बाद वह मांस बेचने वाला व्याध होता है। तत्पश्चात पूर्वजन्म में जो जैसा होता है, उसी के अनुसार उसे व्याधि आ घेरती है। मेरे नामको बेचने वाले ब्राह्मण की मुक्ति नहीं होती- यह ध्रुव है। मृत्युलोक में जिसके स्मरण मेरा नाम आता ही नहीं; वह अज्ञानी एक जन्म में गौकी योनि में उत्पन्न होता है। इसके बाद बकरा, फिर मेढा और सात जन्मों तक भैंसा होता है। जो मानव महान षड्यन्त्री, कुटिल और धर्महीन होता है; वह एक जन्म में तेली होकर फिर कुम्हार होता है। जो झूठा कलंक लगाने वाला और देवता एवं ब्राह्मण का निन्दक होता है, वह एक जन्म में सोनार होकर सात जन्मों तक धोबी होता है। जो ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र कुत्सित आचरण वाले तथा पवित्रता से रहित होते हैं, उन्हें दस हजार वर्षों तक म्लेच्छयोनि में जन्म लेना पड़ता है। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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