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ब्रह्म वैवर्त पुराण
श्रीकृष्ण जन्म खण्ड (उत्तरार्द्ध): अध्याय 79-82
कुवेषधारी म्लेच्छ और पाश ही जिसका शस्त्र है, ऐसे पाशधारी भयंकर यमदूत को देखकर मनुष्य मृत्यु को प्राप्त हो जाता है। ब्राह्मण, ब्राह्मणी, छोटी कन्या और बालक-पुत्र-क्रोधवश विलाप करते हों तो उन्हें देखकर दुःख की प्राप्ति होती है। काला फूल, काले फूलों की माला, शस्त्रास्त्रधारी सेना और विकृत आकारवाली म्लेच्छवर्ण की स्त्री को देखने से निस्संदेह मृत्यु गले लग जाती है। बाजा, नाच, गान, गवैया, लाल वस्त्र, बजाया जाता हुआ मृदंग- इन्हें देखकर अवश्यमेव दुःख मिलता है। प्राणरहित (मुर्दे)- को देखकर निश्चय ही मृत्यु होती है और जो मत्स्य आदि को धारण करता है, उसके भाई का मरण ध्रुव है। घायल अथवा बिना सिर का धड़ अथवा मुण्डित सिर वाले एवं शीघ्रतापूर्वक नाचते हुए बेडौल प्राणी को देखकर मनुष्य मौत का भागी हो जाता है। मरा हुआ पुरुष अथवा मरी हुई काले रंग की भयानक म्लेच्छनारी जिसका स्वप्न में आलिंगन करती है; उसका मर जाना निश्चित है। स्वप्न में जिनके दाँत टूट जाएँ और बाल गिर रहे हों तो उसके धन की हानि होती है अथवा वह शारीरिक पीड़ा से दुःखी होता है। स्वप्न में जिसके ऊपर सींगधारी अथवा दंंष्ट्रावाले जीव तथा बालक और मनुष्य टूटे पड़ते हों; उसे राजा की ओर से भय प्राप्त होता है। गिरता हुआ कटा वृक्ष, शिलावृष्टि, भूसी, छूरा, लाल अंगारा और राख की वर्षा देखने से दुःख की प्राप्ति होती है। गिरते हुए ग्रह अथवा पर्वत, भयानक धूमकेतु अथवा टूटे हुए कंधेवाले मनुष्य को देखकर स्वप्नद्रष्टा दुःख का भागी होता है। जो स्वप्न में रथ, घर, पर्वत, वृक्ष, गौ, हाथी और घोड़ा आकाश से भूतल पर गिरता देखता है; उसके लिए विपत्ति निश्चित है। जो भस्म और अंगारयुक्त गड्ढों में, क्षारकुण्डों में तथा धूलि की राशि पर ऊँचाई से गिरते हैं; निस्संदेह उनकी मृत्यु होती है। जिसके मस्तक पर से कोई दुष्ट बलपूर्वक छत्र खींच लेता है; उसके पिता, गुरु अथवा राजा का नाश हो जाता है। जिसके घर से भयभीत हुई गौ बछड़े सहित चली जाती है; उस पापी की लक्ष्मी और पृथ्वी भी नष्ट हो जाती है। म्लेच्छ यमदूत जिसे पाश से बाँधकर ले जाते हैं; उसकी मृत्यु निश्चित है। जिसे ज्योतिषी ब्राह्मण, ब्राह्मणी तथा गुरु रुष्ट होकर शाप देते हैं; उसे निश्चय ही विपत्ति भोगनी पड़ती है। जिसके शरीर पर शत्रुदल, कौए, मुर्गे और रीछ आकर टूट पड़ते हैं; उसकी अवश्य मृत्यु हो जाती है और स्वप्न में जिसके ऊपर भैंसे, भालू, ऊँट, सूअर और गदहे क्रुद्ध होकर धावा करते हैं; वह निश्चय ही रोगी हो जाता है। जो लाल चंदन की लकड़ी को घी में डुबोकर एक सहस्र गायत्री-मन्त्र द्वारा अग्नि में हवन करता है; उसका दुःस्वप्नजनित दोष शान्त हो जाता है। जो भक्तिपूर्वक इन मधुसूदन का एक हजार जप करता है; वह निष्पाप हो जाता है और उसका दुःस्वप्न भी सुखदायक हो जाता है। जो विद्वान पवित्र हो पूर्व की ओर मुख करके अच्युत, केशव, विष्णु, हरि, सत्य, जनार्दन, हंस, नारायण- इन आठ शुभ नामों का दस बार जप करता है, उसका पाप नष्ट हो जाता है तथा दुःस्वप्न भी शुभकारक हो जाता है। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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