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ब्रह्म वैवर्त पुराण
श्रीकृष्णजन्मखण्ड: अध्याय 25
ब्रह्मा जी ने कहा– बेटा! तुम किसके बल पर श्रीहरि के दास को शाप देने गये थे? जिसके रक्षक भगवान हैं, उसको तीनों लोकों में कौन मार सकता है? भक्तवत्सल श्रीहरि ने छोटे-बड़े सभी भक्तों की रक्षा के लिये सुदर्शन चक्र को सदा नियुक्त कर रखा है। जो मूढ़ श्रीविष्णु के लिये प्राणों के समान प्रिय वैष्णव भक्त से द्वेष रखता है, उसका संहार भगवान विष्णु स्वयं करते हैं। वे श्रीहरि संहारकर्ता का भी संहार करने में समर्थ हैं। अतः बेटा! तुम शीघ्र किसी दूसरे स्थान में जाओ। अब यहाँ तुम्हारी रक्षा नहीं हो सकती। यदि नहीं हटे तो सुदर्शन चक्र मेरे साथ ही तुम्हारा वध कर डालेगा। ब्रह्मा जी की बात सुनकर ब्राह्मण देवता दुर्वासा वहाँ से भयभीत होकर भागे। अब वे डरकर कैलास पर्वत पर भगवान शंकर की शरण में गये और बोले– ‘कृपानिधान! हमारी रक्षा कीजिये।’ भगवान शिव सर्वज्ञ हैं। उन्होंने ब्राह्मण दुर्वासा का कुशल-समाचार तक नहीं पूछा। जो क्षणभर में जगत का संहार करने में समर्थ तथा दीन-दुःखियों के स्वामी हैं, वे महादेव जी मुनि से बोले। शंकर जी ने कहा– द्विजश्रेष्ठ! सुस्थिर होकर मेरी बात सुनो। मुने! तुम महर्षि अत्रि के पुत्र तथा जगत्स्रष्टा ब्रह्मा जी के पौत्र हो। वेदों के विद्वान तथा सर्वज्ञ हो, परंतु तुम्हारा कर्म मूर्खों के समान है। वेदों, पुराणों और इतिहासों में सर्वत्र जिन सर्वेश्वर का निरूपण हुआ है; उन्हीं को तुम मूढ़ मनुष्य की भाँति नहीं जानते हो। जिनके भ्रूभंग की लीलामात्र से मैं, ब्रह्मा, रुद्र, आदित्य, वसु, धर्म, इन्द्र, सम्पूर्ण देवता, मुनीन्द्र और मनु उत्पन्न और विलीन होते रहते हैं; उन्हीं श्रीहरि के प्राणों से भी बढ़कर प्रिय भक्त को तुम किसकी शक्ति से मारने चले थे? उनका चक्र उन्हीं के तुल्य तेजस्वी है। उसे रोकना सर्वथा कठिन है। उस चक्र को यद्यपि उन्होंने भक्तों की रक्षा में लगा रखा है, तथापि उन्हें उस पर पूरा भरोसा नहीं होता। इसलिये वे स्वयं उनकी रक्षा करने के लिये जाते हैं। उनके मुँह से अपने गुणों और नामों का श्रवण करके उन्हें बड़ा आनन्द मिलता है। इसलिये भगवान भक्त के साथ सदा छाया की तरह घूमते रहते हैं। अतः ब्राह्मणदेव! गोविन्द का भजन करो। उनके चरणकमलों का चिन्तन करो। श्रीहरि के स्मरणमात्र से भी सारी आपत्तियाँ नष्ट हो जाती हैं। अब शीघ्र ही वैकुण्ठ धाम में जाओ। उस धाम के अधिपति श्रीहरि ही तुम्हारे शरणदाता हैं। वे प्रभु दया के सागर हैं; अतः तुम्हें अवश्य ही अभयदान देंगे। ये बातें हो ही रही थीं कि सारा कैलास चक्र के तेज से व्याप्त हो उठा, जैसे समस्त भूमण्डल सूर्य की किरणों से उद्दीप्त हो उठा हो। उस समय सम्पूर्ण कैलासवासी उस चक्र की विकराल ज्वाला से संतप्त हो ‘त्राहि-त्राहि’ पुकारते हुए भगवान शंकर की शरण में गये। उस दुःसह चक्र को देख पार्वती सहित करुणानिदान भगवान शंकर ने ब्राह्मण को प्रेमपूर्वक आशीर्वाद देते हुए कहा– ‘यदि तेज सत्य है और चिरकाल से संचित तप सत्य है तो अपराध करके भयभीत हुआ यह ब्राह्मण संताप से मुक्त हो जाये।’ |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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