तत्पश्चात अन्य समय में वह पकता है और अन्य समय में गृहस्थ पुरुष उसके फल को पाता है। इसी प्रकार सबके विषय में समझ लेना चाहिये। प्रत्येक कर्म का फल देर से ही मिलता है। संसार में गृहस्थ पुरुष जो बीज बोता है, वही भगवान विष्णु की माया से समयानुसार अंकुर और वृक्ष होता है और यथासमय गृहस्थ पुरुष को उसके फल की उपलब्धि होती है। पुण्यात्मा पुरुष पुण्यभूमि में चिरकाल तक जो तप करता है, उसका फल देने वाले सचमुच देवता ही हैं; इसमें संशय नहीं है। ब्राह्मणों के मुख में तथा ऊसर भूमि से रहित उत्तम खेत में मनुष्य भक्तिभाव से जो आहुति डालता है, उसका फल उसे निश्चय ही प्राप्त होता है। बल, सौन्दर्य, ऐश्वर्य, धन, पुत्र, स्त्री और उत्तम पति– कोई भी पदार्थ तपस्या के बिना नहीं मिलता। अतः तप के बिना क्या हो सकता है? जो भक्तिभाव से प्रकृति (दुर्गादेवी)– का सेवन करता है, वह प्रत्येक जन्म में विनयशील सद्गुणवती तथा सुन्दरी प्राणवल्लभा पत्नी को प्राप्त करता है।
प्रकृति के ही वर से भक्त पुरुष लीलापूर्वक अविचल लक्ष्मी, पुत्र-पौत्र, भूमि, धन और संतति को पाता है। भगवान शिव कल्याणस्वरूप, कल्याणदाता और कल्याणप्राप्ति के कारण हैं। वे ज्ञानानन्दस्वरूप, महात्मा, परमेश्वर एवं मृत्युंजय हैं। जो भक्तिभाव से उन महेश्वर का सेवन करता है, वह पुरुष प्रत्येक जन्म में सुन्दरी पत्नी पाता है और उनकी आराधना करने वाली स्त्री प्रत्येक जन्म में उत्तम पति पाती है। भगवान हर के वर से मनुष्य को विद्या, ज्ञान, उत्तम कविता, पुत्र-पौत्र, उत्कृष्ट लक्ष्मी, धन, बल और पराक्रम की प्राप्ति होती है। जो मानव ब्रह्मा जी का भजन करता है, वह भी संतान और लक्ष्मी को पाता है।
ब्रह्मा जी के वरदान से मनुष्य को विद्या, ऐश्वर्य और आनन्द की प्राप्ति होती है। जो मनुष्य भक्तिभाव से दीनानाथ, दिनेश्वर सूर्य की आराधना करता है, वह निश्चय ही यहाँ विद्या, आरोग्य, आनन्द, धन और पुत्र पाता है। जो सबसे प्रथम पूजने योग्य, सर्वेश्वर, सनातन, देवाधिदेव गणेश जी की भक्तिभाव से पूजा करता है, उसके जन्म-जन्म में समस्त विघ्नों का नाश होता है। वह सोते-जागते हर समय परम आनन्द का अनुभव करता है।