ब्रह्म वैवर्त पुराण
प्रकृतिखण्ड : अध्याय 63-64
भगवान् नारायण कहते हैं– महाभाग नारद! राजा सुरथ ने जिस क्रम से देवी परा प्रकृति की आराधना की थी, वह वेदोक्त क्रम बता रहा हूँ, सुनो। महाराज सुरथ ने स्नान करके आचमन किया। फिर त्रिविध न्यास, करन्यास, अंगन्यास तथा मन्त्रांगन्यास करके भूतशुद्धि की। इसके बाद प्राणायाम करके शंख-शोधन के अनन्तर देवी का ध्यान किया और मिट्टी की प्रतिमा में उनका आवाहन किया। फिर भक्तिभाव से ध्यान करके प्रेमपूर्वक उनका पूजन किया। देवी के दाहिने भाग में लक्ष्मी की स्थापना करके परम धार्मिक नरेश ने उनकी भी भक्तिभाव से पूजा की। नारद! तत्पश्चात् देवी के सामने कलश पर गणेश, सूर्य देवता, अग्नि, विष्णु, शिव और पार्वती– इन छः देवताओं का आवाहन करके राजा ने विधिपूर्वक भक्ति से उनका पूजन किया। प्रत्येक विद्वान पुरुष को चाहिये कि वह पूर्वोक्त छः देवताओं की पूजा और वन्दना करके महादेवी का प्रेमपूर्वक निम्नांकित रीति से ध्यान करे। मुने! सामवेद में जो ध्यान बताया गया है, वह परम उत्तम तथा कल्पवृक्ष के समान वांछापूरक है। मूलप्रकृति ईश्वरी महादेवी का नित्य ध्यान करे। वे सनातनी देवी ब्रह्मा, विष्णु और शिव आदि के लिये भी पूजनीया तथा वन्दनीया हैं। उन्हें नारायणी और विष्णुमाया कहते हैं। वे वैष्णवी देवी विष्णुभक्ति देने वाली हैं। यह सब कुछ उनका ही स्वरूप है। वे सबकी ईश्वरी, सबकी आधारभूता, परात्परा, सर्वविद्यारूपिणी, सर्वमन्त्रमयी तथा सर्वशक्तिस्वरूपा हैं। वे सगुणा और निर्गुणा हैं। सत्यस्वरूपा, श्रेष्ठा, स्वेच्छामयी एवं सती हैं। महाविष्णु की जननी हैं। श्रीकृष्ण के आधे अंग से प्रकट हुई हैं। कृष्णप्रिया, कृष्णशक्ति एवं कृष्णबुद्धि की अधिष्ठात्री देवी हैं। श्रीकृष्ण ने उनकी स्तुति, पूजा और वन्दना की है। वे कृपामयी हैं। उनकी अंगकान्ति तपाये हुए सुवर्ण के समान है। उनकी प्रभा करोड़ों सूर्यों की दीप्ति को भी लज्जित करती है। उनके प्रसन्न मुख पर मन्द-मन्द हास्य की छटा छायी हुई है। वे भक्तों पर अनुग्रह करने के लिये व्याकुल हैं। उनका नाम दुर्गा देवी है। वे सौ भुजाओं से युक्त हैं और महती दुर्गति का नाश करने वाली हैं। त्रिनेत्रधारी महादेव जी की प्रिया हैं। साध्वी हैं। त्रिगुणमयी एवं त्रिलोचना हैं। त्रिलोचन शिव की प्राणरूपा हैं। उनके मस्तक पर विशुद्ध अर्द्धचन्द्र का मुकुट है। वे मालती की पुष्पमालाओं से अलंकृत केशपाश धारण करती हैं। उनका मुख सुन्दर एवं गोलाकार है। वे भगवान शिव के मन को मोहने वाली हैं। रत्नों के युगल कुण्डल से उनके कपोल उद्भासित होते रहते हैं। वे नासिका के दक्षिण भाग में गजमुक्ता से निर्मित नथ धारण करती हैं। कानों में बहुसंख्यक बहुमूल्य रत्नमय आभूषण पहनती हैं। मोतियों की पाँत को तिरस्कृत करने वाली दन्तपंक्ति उनके मुख की शोभा बढ़ाती है। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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