ब्रह्म वैवर्त पुराण
प्रकृतिखण्ड : अध्याय 43
तदनन्तर मन को शान्त करके भक्तिपूर्वक स्तुति करने के पश्चात् देवी को प्रणाम करे। फल प्रदान करने वाला यह उत्तम स्तोत्र सामवेद में वर्णित है। जो पुरुष देवी के उपर्युक्त अष्टाक्षर महामन्त्र का एक लाख जप करता है, उसे अवश्य ही उत्तम पुत्र की प्राप्ति होती है, ऐसा ब्रह्मा जी ने कहा है। मुनिवर! अब सम्पूर्ण शुभकामनाओं को प्रदान करने वाला स्तोत्र सुनो। नारद! सबका मनोरथ पूर्ण करने वाला यह स्तोत्र वेदों में गोप्य है। ‘देवी को नमस्कार है। महादेवी को नमस्कार है। भगवती सिद्धि एवं शान्ति को नमस्कार है। शुभा, देवसेना एवं भगवती षष्ठी को बार-बार नमस्कार है। वरदा, पुत्रदा, धनदा, सुखदा एवं मोक्षदा भगवती षष्ठी को बार-बार नमस्कार है। मूलप्रकृति के छठे अंश से प्रकट होने वाली भगवती सिद्धा को नमस्कार है। माया, सिद्धयोगिनी, सारा, शारदा और परादेवी नाम से शोभा पाने वाली भगवती षष्ठी को बार-बार नमस्कार है। बालकों की अधिष्ठात्री, कल्याण प्रदान करने वाली, कल्याण-स्वरूपिणी एवं कर्मों के फल प्रदान करने वाली देवी षष्ठी को बार-बार नमस्कार है। अपने भक्तों को प्रत्यक्ष दर्शन देन वाली तथा सबके लिये सम्पूर्ण कार्यों में पूजा प्राप्त करने की अधिकारिणी स्वामी कार्तिकेय की प्राणप्रिया देवी षष्ठी को बार-बार नमस्कार है। मनुष्य जिनकी सदा वन्दना करते हैं तथा देवताओं की रक्षा में जो तत्पर रहती हैं, उन शुद्धसत्त्वस्वरूपा देवी षष्ठी को बार-बार नमस्कार है। हिंसा और क्रोध से रहित भगवती षष्ठी को बार-बार नमस्कार है। सुरेश्वरि! तुम मुझे धन दो, प्रिय पत्नी दो और पुत्र देने की कृपा करो। महेश्वरि! तुम मुझे सम्मान दो, विजय दो और मेरे शत्रुओं का संहार कर डालो। धन और यश प्रदान करने वाली भगवती षष्ठी को बार-बार नमस्कार है। सुपूजिते! तुम भूमि दो, प्रजा दो, विद्या दो तथा कल्याण एवं जय प्रदान करो। तुम षष्ठीदेवी को बार-बार नमस्कार है।’ इस प्रकार स्तुति करने के पश्चात् महाराज प्रियव्रत ने षष्ठी देवी के प्रभाव से यशस्वी पुत्र प्राप्त कर लिया। ब्रह्मन! जो पुरुष भगवती षष्ठी के इस स्तोत्र को एक वर्ष तक श्रवण करता है, वह यदि अपुत्री हो तो दीर्घजीवी सुन्दर पुत्र प्राप्त कर लेता है। जो एक वर्ष तक भक्तिपूर्वक देवी की पूजा करके इनका यह स्तोत्र सुनता है, उसके सम्पूर्ण पाप विलीन हो जाते हैं। महान वन्ध्या भी इसके प्रसाद से संतान प्रसव करने की योग्यता प्राप्त कर लेती है। यह भगवती देवसेना की कृपा से गुणी, विद्वान, यशस्वी, दीर्घायु एवं श्रेष्ठ पुत्र की जननी होती है। काकवन्ध्या अथवा मृतवत्सा नारी एक वर्ष तक इसका श्रवण करने के फलस्वरूप भगवती षष्ठी के प्रभाव से पुत्रवती हो जाती है। यदि बालक को रोग हो जाए तो उसके माता-पिता एक मास तक इस स्तोत्र का श्रवण करें तो षष्ठी देवी की कृपा से उस बालक की व्याधि शान्त हो जाती है। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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