गीता की प्रचलित प्रति के अनुसार अठारह अध्यायों के संपूर्ण श्लोक जोड़ने पर पाँच सौ चौहत्तर श्लोक भगवान श्रीकृष्ण के, चौरासी श्लोक अर्जुन के, इकतालीस श्लोक संजय के और एक श्लोक धृतराष्ट्र का है, जिनका कुल योग सात सौ होता है। इन सात सौ श्लोकों में छः सौ चौवालीस श्लोक बत्तीस अक्षरों के हैं, एक श्लोक[1] तैंतीस अक्षरों का है, इक्यावन श्लोक चौवालीस अक्षरों के हैं, तीन श्लोक[2] पैंतालीस अक्षरों के है और एक श्लोक[3] छियालीस अक्षरों का है। इस प्रकार गीता के श्लोकों के संपूर्ण अक्षर 23066 (तेईस हज़ार छाछठ) हैं। पुष्पिकाओं के कुल आठ सौ तिहत्तर अक्षर हैं। उवाचों के कुल तीन सौ तिरासी अक्षर हैं। ‘अथ श्रीमद्भगवद्गीता’, ‘अथ प्रथमोऽध्यायः’ आदि के कुल एक सौ सैंतीस अक्षर हैं। इस प्रकार गीता में कुल 24459 (चौबीस हज़ार चार सौ उनसठ) अक्षर हैं। प्राचीन काल से ऐसी परंपरा है कि बत्तीस अक्षरों का एक श्लोक मानकर किसी भी पुराण आदि ग्रंथ के श्लोकों का परिमाण निर्धारित किया जाता है[4] इसके अनुसार अगर गीता के श्लोकों के संपूर्ण अक्षरों का परिमाण निकाला जाए, तो 720×26/32 श्लोक होते हैं। अगर इनके साथ ‘उवाच’ के तीन सौ तिरासी अक्षर जोड़ दिये जाएँ, तो 732×25/32 श्लोक होते हैं; और यदि इनके (श्लोकाक्षरों के) साथ केवल ‘पुष्पिका’ के आठ सौ तिहत्तर अक्षर जोड़ दिआ जाएं, तो 748×3/32 श्लोक होते हैं। अगर श्लोकों के संपूर्ण अक्षरों के साथ ‘उवाच’, ‘पुष्पिका’ और ‘अथ प्रथमोऽध्यायः’ आदि के कुल 1393 (एक हज़ार तीन सौ तिरानवे) अक्षर और जोड़ें, तो 764×11/32 श्लोक होते हैं। इस तरह किसी भी प्रकार से महाभारत- कथित गीता के परिमाण की संगति नहीं बैठती। फिर भी परिमाण सूचक श्लोक उपलब्ध होने के कारण परिमाण की संगति बैठाना आवश्यक समझकर एक संत के द्वारा प्राप्त संकेत के अनुसार चेष्टा की गयी है। विद्वानों से निवेदन है कि वे इस पर गंभीरता से विचार करके अपनी सम्मति देने की कृपा करें। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ गीता 11:1
- ↑ 2।29;10; और 15।3
- ↑ गीता 2:6
- ↑ श्रीमद्भगभागवत महापुराण की ‘अन्वितार्थ प्रकाशिका’ टीका के लेखक पं. श्रीगंगा सहाय जी शर्मा ने भी श्रीमद्भागवत के श्लोकों की गणना के लिए इसी अक्षर- गणना की (संपूर्ण अक्षरों में बत्तीस का भगा देने वाली) पद्धति को अपनाया है और प्रत्येक अध्याय के अंत में उसके श्लोकों की गणना को श्लोकबद्ध करके लिखा है। यह बात दूसरी है कि उनकी गणना के अनुसार श्रीमद्भागवत् के अठारह हज़ार श्लोकों में से केवल डेढ़ श्लोक ही कम हैं। इसी अक्षर- गणना के आधार पर किसी ग्रंथ के लेखक को पारिश्रमिक देने की परंपरा भी प्राचीनकाल से है।
संबंधित लेख
श्लोक संख्या | विषय | पृष्ठ संख्या |
वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज