श्रीमद्भगवद्गीता साधक-संजीवनी हिन्दी-टीका -स्वामी रामसुखदास
नवम अध्याय
सातवें अध्याय के पहले श्लोक में ‘मय्यासक्तमनाः’ आदि पदों से जो विषय संक्षेप से कहा था, उसी को नवें अध्याय के चौंतीसवें श्लोक में ‘मन्मनाः’ आदि पदों से थोड़ा विस्तार से कहा है। सातवें अध्याय के दूसरे श्लोक में भगवान ने कहा कि मैं विज्ञानसहित ज्ञान कहूँगा; जिसको जानने से फिर जानना बाकी नहीं रहेगा। यही बात भगवान ने नवें अध्याय के पहले श्लोक में कही कि मैं विज्ञानसहित ज्ञान कहूँगा जिसको जानकर तू अशुभ (संसार) से मुक्त हो जाएगा। मुक्ति होने से फिर जानना बाकी नहीं रहता। इस प्रकार भगवान ने सातवें और नवें- दोनों ही अध्यायों के आरंभ में विज्ञानसहित ज्ञान कहने की प्रतिज्ञा की और दोनों का एक फल बताया। सातवें अध्याय के तीसरे श्लोक में भगवान ने कहा कि हजारों में से कोई एक मनुष्य वास्तविक सिद्धि के लिए यत्न करता है और यत्न करने वालों में कोई एक मेरे को तत्त्व से जानता है। इसका कारण नवें अध्याय के तीसरे श्लोक में बताते हैं कि इस विज्ञानसहित ज्ञान पर श्रद्धा न रखने से मनुष्य मेरे को प्राप्त न हो करके मौत के रास्ते में चले जाते हैं अर्थात बार-बार जन्मते-मरते रहते हैं। सातवें अध्याय के छठे श्लोक में भगवान ने अपने को संपूर्ण जगत का प्रभाव और प्रलय बताया। यही बात नवें अध्याय के अठारहवें श्लोक में ‘प्रभवः प्रलयः’ पदों से बतायी। सातवें अध्याय के दसवें श्लोक में भगवान ने अपने को सनातन बीज बताया और नवें अध्याय के अठारहवें श्लोक में अपने को अव्यय बीज बताया। सातवें अध्याय के बारहवें श्लोक में ‘न त्वहं तेषु ते मयि’ कहकर जिस राजविद्याकत का संक्षेप से वर्णन किया था, उसी का नवें अध्याय के चौथे और पाँचवें श्लोक में विस्तार से वर्णन किया है। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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