श्रीमद्भगवद्गीता साधक-संजीवनी हिन्दी-टीका -स्वामी रामसुखदास
अष्टम अध्याय
अग्निर्ज्योतिरहः शुक्लः षण्मासा उत्तरायणम् । अर्थ- जिस मार्ग में प्रकाश स्वरूप अग्नि का अधिपति देवता, दिन का अधिपति देवता, शुक्ल पक्ष का अधिपति देवता और छः महीनों वाले उत्तरायण का अधिपति देवता है, शरीर छोड़कर उस मार्ग से गये हुए ब्रह्मवेत्ता पुरुष[1] ब्रह्म को प्राप्त हो जाते हैं। व्याख्या- ‘अग्निर्ज्योतिरहः शुक्लः षण्मासाउत्तरायणम्’- इस भूमंडल पर शुक्लमार्ग में सबसे पहले अग्नि देवता का अधिकार रहता है। अग्नि रात्रि में प्रकाश करती है, दिन में नहीं; क्योंकि दिन के प्रकाश की अपेक्षा अग्नि का प्रकाश सीमित है। अतः अग्नि का प्रकाश थोड़ी दूर तक[2] तथा थोड़े समय तक रहता है; और दिन का प्रकाश बहुत दूर तक तथा बहुत समय तक रहता है। शुक्ल पक्ष पंद्रह दिनों का होता है, जो कि पितरों की एक रात है। इस शुक्ल पक्ष का प्रकाश आकाश में बहुत दूर तक और बहुत दिनों तक रहता है। इसी तरह से जब सूर्य भगवान उत्तर की तरफ चलते हैं, तब उसको उत्तरायण कहते हैं, जिसमें दिन का समय बढ़ता है। वह उत्तरायण छः महीनों का होता है, जो कि देवताओं का एक दिन है। उस उत्तरायण का प्रकाश बहुत दूर तक और बहुत समय तक रहता है। ‘तत्र प्रयाता गच्छन्ति ब्रह्म ब्रह्मविदो जनाः’- जो शुक्ल मार्ग में अर्थात प्रकाश की बहुलता वाले मार्ग में जान वाले हैं, वे सबसे पहले ज्योतिःस्वरूप अग्नि देवता के अधिकार में आते हैं। जहाँ तक अग्नि देवता का अधिकार है, वहाँ से पार कराकर अग्नि देवता उन जीवों को दिन के देवता को सौंप देता है। दिन का देवता उन जीवों को अपने अधिकार तक ले जाकर शुक्ल पक्ष के अधिपति देवता के समर्पित कर देता है। वह शुक्ल पक्ष का अधिपति देवता अपनी सीमा को पार कराकर उन जीवों को उत्तरायण के अधिपति देवता के सुपुर्द कर देता है। फिर वह उत्तरायण का अधिपति देवता उनको ब्रह्मलोक के अधिकारी देवता के समर्पित कर देता है। इस प्रकार वे क्रमपूर्वक ब्रह्मलोक में पहुँच जाते हैं। ब्रह्मा जी की आयु तक वे वहाँ रहकर महाप्रलय में ब्रह्मा जी के साथ ही मुक्त हो जाते हैं- सच्चिदानन्दघन परमात्मा को प्राप्त हो जाते हैं। यहाँ ‘ब्रह्मविदः’ पद परमात्मा को परोक्षरूप से जानने वाले मनुष्यों का वाचक है, अपरोक्ष रूप से अनुभव करने वाले ब्रह्मज्ञानियों का नहीं। कारण कि अगर वे अपरोक्ष ब्रह्मज्ञानी होते तो यहाँ ही मुक्त (सद्योमुक्त या जीवन्मुक्त) हो जाते और उनको ब्रह्मलोक में जाना नहीं पड़ता। संबंध- अब आगे के श्लोक में कृष्णमार्ग का अर्थात लौटकर आने वालों के मार्ग का वर्णन करते हैं। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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