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श्रीमद्भगवद्गीता साधक-संजीवनी हिन्दी-टीका -स्वामी रामसुखदास
चतुर्थ अध्याय शास्त्रों में ज्ञान प्राप्ति के आठ अंतरंग साधन कहे गये हैं- 1. विवेक, 2.वैराग्य, 3. शमादि षट्संपत्ति[1], 4. मुमुक्षुता, 5. श्रवण, 6. मनन, 7. निदिध्यासन और 8. तत्त्वपदार्थ संशोधन। मुमुक्षुता जाग्रत होने के बाद साधक पदार्थों और कर्मों का स्वरूप से त्याग करके श्रोत्रिय और ब्रह्मनिष्ठ गुरु के पास जाता है। गुरु के पास निवास करते हुए शास्त्रों को सुनकर तात्पर्य का निर्णय करना तथा उसे धारण करना ‘श्रवण’ है। श्रवण से प्रमाणगत संशय दूर होता है। परमात्मतत्त्व का युक्ति प्रयुक्तियों से चिंतन करना ‘मनन’ है। मनन से प्रेमयगत संशय दूर होता है। संसार की सत्ता को मानना और परमात्मतत्त्व की सत्ता को न मानना ‘विपरीत भवना’ कहलाती है। विपरीत भावना को हटाना ‘निदिध्यासन’ है। प्राकृत पदार्थ मात्र से संबंध विच्छेद हो जाय और केवल एक चिन्मय मात्र से संबंध विच्छेद हो जाय और केवल एक चिन्मय तत्त्व शेष रह जाय- यह ‘तत्त्वप दार्थ संशोधन’ है। से ही तत्त्व साक्षात्कार कहते हैं।[2] विचारपूर्वक देखा जाय तो इन सब साधनों का तात्पर्य है- असाधन अर्थात असत् के संबंध का त्याग। त्याज्य वस्तु अपने लिये नहीं होती, पर त्याग का परिणाम[3] अपने लिये होता है। |
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ शम, दम, श्रद्धा, उपरति, तितिक्षा और समाधान
- ↑ जो सांसारिक भोग और संगह में लगे हुए हैं, ऐसे मनुष्यों के द्वारा ‘श्रवण’ होता है शास्त्रों का, ‘मनन’ होता है विषयों का, ‘निदिध्यासन’ होता है रुपयों का और ‘साक्षात्कार’ होता है दुःखों का!
- ↑ तत्त्व साक्षात्कार
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