श्रीमद्भगवद्गीता साधक-संजीवनी हिन्दी-टीका -स्वामी रामसुखदास
प्रथम अध्याय संबंध- पूर्व श्लोक में अर्जुन ने अपनी दलीलों का निर्णय सुना दिया। उसके बाद अर्जुन ने क्या किया- इसको संजय आगे के श्लोक बताते हैं।
अर्थ- संजय बोले- ऐसा कहकर शोकाकुल मन वाले अर्जुन बाण सहित धनुष का त्याग करके युद्ध भूमि में रथ के मध्य भाग में बैठ गये। व्याख्या- ‘एवमुक्त्वार्जुनः........शोकसंविग्न मानसः’- युद्ध करना संपूर्ण अनर्थों का मूल है, युद्ध करने से यहाँ कुटुम्बियों का नाश होगा, परलोक में नरकों की प्राप्ति होगी आदि बातों को युक्ति और प्रमाण से कहकर शोक से अत्यंत व्याकुल मन वाले अर्जुन ने युद्ध न करने का पक्का निर्णय कर लिया। जिस रणभूमि में वे हाथ में धनुष लेकर उत्साह के साथ आये थे, उसी रणभूमि में उन्होंने अपने बायें हाथ से गांडीव धनुष को और दायें हाथ से बाण को नीचे रख दिया और स्वयं रथ के माध्यभाग में अर्थात दोनों सेनाओं को देखने के लिए जहाँ पर खड़े थे, वहीं पर शोकमुद्रा में बैठ गये।
इस प्रकार ऊँ, तत्, सत्- इन भगवन्नामों के उच्चारण पूर्वक ब्रह्मविद्या और योगशास्त्रमय श्रीमद्भगवद्गीतोपनिषद्रूप श्रीकृष्णार्जुन संवाद में ‘अर्जुन विषाद योग ’ नामक पहला अध्याय पूर्ण हुआ। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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