श्रीमद्भगवद्गीता साधक-संजीवनी हिन्दी-टीका -स्वामी रामसुखदास
षोडश अध्याय
आसुरी-संपत्ति वाले व्यक्ति शास्त्रोक्त यज्ञ, दान, पूजन आदि कर्म तो करते हैं और उनके लिए पैसे भी खर्च करते हैं, पर करते हैं शास्त्रविधि की परवाह न करके और दम्भपूर्वक ही। मंदिरों में जब कोई मेला-महोत्सव हो और ज्यादा लोगों के आने की उम्मीद हो तथा बड़े-बड़े धनी लोग आने वाले हों, तब मंदिरों को अच्छी तरह सजाएंगे, ठाकुर जी को खूब बढ़िया-बढ़िया गहने-कपड़े पहनाएंगे, जिससे ज्यादा लोग आ जाएँ और खूब भेंट चढ़ावा इकट्ठा हो जाए। इस प्रकार ठाकुर जी का तो नाम मात्र का पूजन होता है, पर वास्तव में पूजन होता है लोगों का। ऐसे ही कोई मिनिस्टर या अफसर आने वाला हो, तो उनको राजी करने के लिए ठाकुर जी को खूब सजाएंगे और जब वे मंदिरों में आएंगे, तब उनका खूब आदर-सत्कार करेंगे, उनको ठाकुर जी की माला देंगे, प्रसाद (जो उनके लिए विशेष रूप से तैयार रखा रहता है) देंगे, इसलिए कि वे राजी हो जाएंगे, तो हमारे व्यापार में, घरेलू कामों में हमारी सहायता करेंगे, मुकदमें आदि में हमारा पक्ष लेंगे, आदि। इन भावों से वे ठाकुर जी का जो पूजन करते हैं, वह तो नाम मात्र का पूजन है। वास्तव में पूजन में होता है- अपने व्यापार का, घरेलू कामों का, लड़ाई-झगड़ों का; क्योंकि उनका उद्देश्य ही वही है। |
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