श्रीमद्भगवद्गीता साधक-संजीवनी हिन्दी-टीका -स्वामी रामसुखदास
षोडश अध्याय
कामना के कारण ही सब पाप होते हैं। शरीर के तादात्म्य से भोग और संग्रह की कामना होती है।[4] अतः जड का संग (महत्त्व) ही संपूर्ण पापों का- आसुरी संपत्ति का कारण है। जड का संग न हो, तो दैवी संपत्ति स्वतः सिद्ध है। अर्जुन साधक मात्र के प्रतिनिधि हैं। इसलिए अर्जुन के निमित्त से भगवान साधक मात्र को आश्वासन देते हैं कि चिंता मत करो; अपने में आसुरी-संपत्ति दीख जाए, तो घबराओ मत; क्योंकि तुम्हारे में दैवी-संपत्ति स्वतः स्वाभाविक विद्यमान है- तात्पर्य यह हुआ कि साधक को पारमार्थिक उन्नति से कभी निराशा नहीं होना चाहिए; क्योंकि परमात्मा का ही अंश होने से मनुष्यमात्र में परमात्मा की संपत्ति (दैवी-संपत्ति) रहती ही है। परमात्मप्राप्ति का ही उद्देश्य होने से दैवी-संपत्ति स्वतः प्रकट हो जाती है। परमात्मा का अंश होने के नाते साधक को परमात्मप्राप्ति से कभी निराश नहीं होना चाहिए; क्योंकि परमात्मा ने कृपा करके मनुष्य शरीर अपनी प्राप्ति के लिए ही दिया है। इसलिए परमात्मा का संकल्प तो हमारे कल्याण का ही है। यदि हम अपना अलग कोई संकल्प न रखें, प्रत्युत परमात्मा के संकल्प में ही अपना संकल्प मिला दें, तो फिर उनकी कृपा से स्वतः कल्याण हो ही जाता है। संबंध- संपूर्ण प्राणियों में चेतन और जड- दोनों अंश रहते हैं। उनमें से कई प्राणियों का जडता से विमुख होकर चेतन (परमात्मा) की ओर मुख्यता से लक्ष्य रहता है और कई प्राणियों का चेतन से विमुख होकर जडता (भोग और संग्रह) की ओर मुख्यता से लक्ष्य रहता है। इस प्रकार चेतन और जड की मुख्यता को लेकर प्राणियों के दो भेद हो जाते हैं, जिनको भगवान आगे के श्लोक में बताते हैं। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ गीता 4:18
- ↑ गीता 18:17
- ↑ गीता 3।36-37
- ↑ कोई भी मनुष्य अपने को दोषी बनाना पसंद नहीं करता; क्योंकि इस लोक में दोषी का अपमान, तिरस्कार और निन्दा होती है तथा परलोक में चौरासी लाख योनियाँ तथा नरक भोगने पड़ते हैं। परंतु मनुष्य नाशवान् जड के संग से पैदा हुई कामना के वशीभूत होकर न करने लायक शास्त्र-निषिद्ध क्रिया कर बैठता है। अतः उस क्रिया का परिणाम कर्ता (मनुष्य) की रुचि के (मैं निर्दोष रहूँ- इसके) अनुसार नहीं होता और कर्ता (अपनी रुचि के विरुद्ध) दोषी तथा पापी बन जाता है।
- ↑ गीता 16:5
संबंधित लेख
श्लोक संख्या | विषय | पृष्ठ संख्या |
वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज