श्रीमद्भगवद्गीता साधक-संजीवनी हिन्दी-टीका -स्वामी रामसुखदास
षोडश अध्याय
इसीलिए पति के मरने पर वह उसके वियोग में प्रसन्नतापूर्वक सती हो जाती है। तात्पर्य यह हुआ कि जब केवल भगवान में अनन्य प्रेम हो जाता है तो फिर प्राणों का मोह नहीं रहता। प्राणों का मोह न रहने से आसुरी-संपत्ति सर्वथा मिट जाती है और दैवी-संपत्ति स्वतः प्रकट हो जाती है। इसी बात का संकेत गोस्वामी तुलसीदास महाराज ने इस प्रकार किया है- प्रेम भगति जल बिनु रघुराई । संबंध- अब तक एक परमात्मा का ही उद्देश्य रखने वालों की दैवी-संपत्ति बतायी; परंतु सांसारिक भोग भोगना और संग्रह करना ही जिनका उद्देश्य है, ऐसे प्राणपोषणपरायण लोगों की कौन सी संपत्ति होती है- इसे अब आगे के श्लोक में बताते हैं। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ मानस 7।49।3
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