श्रीमद्भगवद्गीता साधक-संजीवनी हिन्दी-टीका -स्वामी रामसुखदास
पंचदश अध्याय
उपर्युक्त पदों में विशेष रूप ‘सोमः’ पद देने का अभिप्राय यह है कि चंद्रमा में प्रकाश के साथ-साथ अमृत वर्षा की शक्ति भी है। वह अमृत पहले चंद्रलोक से चंद्रमंडल में आता है और फिर चंद्रमंडल से भूमंडल पर आता है। यहाँ ‘ओषधीः’ पद के अंतर्गत गेहूँ, चना आदि सब प्रकार के अन्न समझने चाहिए। चंद्रमा के द्वारा पुष्ट हुए अन्न का भोजन करने से ही मनुष्य, पशु, पक्षी आदि समस्त प्राणि पुष्टि प्राप्त करते हैं। ओषधियों, वनस्पतियों में शरीर को पुष्ट करने की जो शक्ति है, वह चंद्रमा से आती हैं। चंद्रमा की वह पोषण शक्ति भी उसकी अपनी न होकर भगवान की ही है। भगवान ही चंद्रमा को निमित्त बनाकर सबका पोषण करते हैं। संबंध- समष्टि-शक्ति में अपना प्रभाव बताने के बाद अब भगवान जिस शक्ति से व्यष्टि-जगत में क्रियाएँ हो रही हैं, उस व्यष्टि-शक्ति में अपना प्रभाव बताते हैं। |
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