श्रीमद्भगवद्गीता साधक-संजीवनी हिन्दी-टीका -स्वामी रामसुखदास
दशम अध्याय
तात्पर्य यह हुआ कि मनुष्य, देवता, दानव आदि कोई भी अपनी शक्ति से, सामर्थ्य से, योग्यता से, बुद्धि से भगवान को नहीं जान सकते। कारण कि मनुष्य आदि में जितनी जानने की योग्यता, सामर्थ्य, विशेषता है, वह सब प्राकृत है और भगवान प्रकृति से अतीत हैं। त्याग, वैराग्य, तप, स्वाध्याय आदि अंतःकरण को निर्मल करने वाले हैं, पर इनके बल से भी भगवान को नहीं जान सकते। भगवान को तो अनन्यभाव से उनके शरण होकर उनकी कृपा से ही जान सकते हैं।[1] |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ गीता 10।11; 11।54
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