श्रीमद्भगवद्गीता तत्त्वविवेचनी हिन्दी-टीका -जयदयाल गोयन्दका
द्वितीय अध्याय
उत्तर- ‘अथ’ पद यहाँ पक्षान्तर में है। अभिप्राय यह है कि अब प्रकारान्तर से युद्ध की कर्तव्यता सिद्ध की जाती है। प्रश्न- ‘संग्रामम्’ के साथ ‘इमम्’ और ‘धर्म्यम्’- इन दोनों विशेषणों का प्रयोग करके यह कहने का क्या अभिप्राय है कि यदि तू युद्ध नहीं करेगा तो स्वधर्म और कीर्ति को खोकर पाप को प्राप्त होगा? उत्तर- इससे भगवान् ने यह भाव दिखलाया है कि यह युद्ध धर्ममय होने के कारण अवश्य कर्तव्य है, यह बात तुम्हें अच्छी तरह समझा दी गयी; इस पर भी यदि तुम किसी कारण से युद्ध न करोगे तो तुम्हारे द्वारा ‘स्वधर्म का त्याग’ होगा और निवातकवचादि दानवों के साथ युद्ध में विजय पाने के कारण तथा भगवान् शिव जी के साथ युद्ध करने के कारण तुम्हारी जो संसार में बड़ी भारी कीर्ति छायी है, वह भी नष्ट हो जायगी। इसके सिवा कर्तव्य का त्याग करने के कारण तुम्हें पाप भी होगा ही; अतएव तुम जो पाप के भय से युद्ध का त्याग कर रहे हो और भयभीत हो रहे हो, यह सर्वथा अनुचित है। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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