श्रीमद्भगवद्गीता तत्त्वविवेचनी हिन्दी-टीका -जयदयाल गोयन्दका
चतुर्दश अध्याय
रजस्तमश्चाभिभूय सत्त्वं भवति भारत ।
उत्तर- जिस समय रजोगुण और तमोगुण की प्रवृत्ति को रोककर सत्त्वगुण अपना कार्य आरम्भ करता है, उस समय शरीर, इन्द्रिय और अन्तःकरण में प्रकाश, विवेक और वैराग्य आदि के बढ़ जाने से वे अत्यन्त शान्त और सुखमय हो जाते हैं। अतः उस समय रजोगुण के कार्य लोभ, प्रवृत्ति और भोग-वासनादि तथा तमोगुण के कार्य निद्रा, आलस्य और प्रमाद आदि का प्रादुर्भाव नहीं हो सकता। इस प्रकार दोनों गुणों को दबाकर जो सत्त्वगुण का ज्ञान, प्रकाश और सुख आदि को उत्पन्न कर देना है, यही रजोगुण और तमोगुण को दबाकर सत्त्वगुण का बढ़ जाना है। प्रश्न- सत्त्वगुण और तमोगुण को दबाकर रजोगुण का बढ़ना क्या है? उत्तर- जिस समय सत्त्वगुण और तमोगुण की प्रवृत्ति को रोककर रजोगुण अपना कार्य आरम्भ करता है, उस समय शरीर, इन्द्रिय और अन्तःकरण में चंचलता, अशान्ति, लोभ, भोगवासना और नाना प्रकार के कर्मों में प्रवृत्त होने की उत्कट इच्छा उत्पन्न हो जाती है। इस कारण उस समय सत्त्वगुण के कार्य प्रकाश, विवेकशक्ति, शान्ति आदि का भी अभाव-सा हो जाता है। तमोगुण के कार्य निद्रा, प्रमाद और आलस्य आदि भी दब जाते हैं। यही सत्त्वगुण और तमोगुण को दबाकर रजोगुण का बढ़ जाना है। प्रश्न- सत्त्वगुण और रजोगुण को दबाकर तमोगुण का बढ़ना क्या है? उत्तर- जिस समय सत्त्वगुण और रजोगुण की प्रवृत्ति को रोककर तमोगुण अपना कार्य आरम्भ करता है, उस समय शरीर, इन्द्रियाँ और अन्तःकरण में मोह आदि बढ़ जाते हैं और प्रमाद में प्रवृत्ति हो जाती है, वृत्तियाँ विवेकशून्य हो जाती हैं। अतः सत्त्वगुण के कार्य प्रकाश और ज्ञान का एवं रजोगुण के कार्य कर्मों की प्रवृत्ति और भोगों को भोगने की इच्छा आदि का अभाव-सा हो जाता है; ये सब प्रकट नहीं हो पाते। यही सत्त्वगुण और रजोगुण को दबाकर तमोगुण का बढ़ना है। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ गुणों की वृद्धि में निम्नलिखित दस हेतु श्रीमद्भागवत में बताये हैं-
आगामोऽपः प्रजा देशः कालः कर्म च जन्म च। ध्यानं मन्त्रोऽथ संस्कारो दशैते गुणहेतवः।।(11। 13। 4)
‘शास्त्र, जल, सन्तान, देश, काल, कर्म, योनि, चिन्तन, मन्त्र और संस्कार- ये दस गुणों के हेतु हैं अर्थात् गुणों को बढ़ाने वाले हैं। अभिप्राय यह है कि उपर्युक्त पदार्थ जिस गुण से युक्त होते हैं, उनका संग उसी गुण को बढ़ा देता है।’
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