चतुर्दश अध्याय
सम्बन्ध- अब तमोगुण का स्वरूप और उसके द्वारा जीवात्मा के बाँधे जाने का प्रकार बतलाते हैं-
तमस्त्वज्ञानजं विद्धि मोहनं सर्वदेहिनाम् ।
प्रमादालस्यनिद्राभिस्तन्निबध्नाति भारत ।। 8 ।।
हे अर्जुन! सब देहाभिमानियों को मोहित करने वाले तमोगुण को अज्ञान से उत्पन्न जान। वह इस जीवात्मा को प्रमाद, आलस्य और निद्रा के द्वारा बाँधता है।। 8 ।।
प्रश्न- तमोगुण का समस्त देहाभिमानियों को मोहित करना क्या है?
उत्तर- अन्तःकरण और इन्द्रियों में ज्ञानशक्ति का अभाव करके उनमें मोह उत्पन्न कर देना ही तमोगुण का सब देहाभिमानियों को मोहित करना है। जिनका अन्तःकरण और इन्द्रियों के साथ सम्बन्ध है तथा जिनकी शरीर में अहंता या ममता है- वे सभी प्राणी निद्रादि के समय अन्तःकरण और इन्द्रियों में मोह उत्पन्न होने से अपने को मोहित मानते हैं। किन्तु जिनका अन्तःकरण और इन्द्रियों के सहित शरीर में अभिमान नहीं रहा है, ऐसे जीवन्मुक्त उनसे अपना कोई सम्बन्ध नहीं मानते; इसलिये यहाँ तमोगुण को ‘समस्त देहाभिमानियों को मोहित करने वाला’ कहा है।
प्रश्न- तमोगुण को अज्ञान से उत्पन्न बतलाने का क्या अभिप्राय है? सत्रहवें श्लोक में तो अज्ञान की उत्पत्ति तमोगुण से बतलायी है?
उत्तर- तमोगुण से अज्ञान बढ़ता है और अज्ञान से तमोगुण बढ़ता है। इन दोनों में भी बीज और वृक्ष की भाँति अन्योन्याश्रय सम्बन्ध है, अज्ञान बीजस्थानीय है और तमोगुण वृक्षस्थानीय है। इसलिये कहीं तमोगुण से अज्ञान की और कहीं अज्ञान से तमोगुण की उत्पत्ति बतलायी गयी है।
प्रश्न- ‘प्रमाद’, ‘आलस्य’ और ‘निद्रा’- इन तीनों शब्दों का क्या अर्थ है और इनके द्वारा तमोगुण का जीवात्मा को बाँधना क्या है?
उत्तर- अन्तःकरण और इन्द्रियों की व्यर्थचेष्टा का एवं शास्त्रविहित कर्तव्यपालन में अवहेलना का नाम प्रमाद है। कर्तव्य-कर्मों में अप्रवृत्तिरूप तिरुद्यमता का नाम आलस्य है। तन्द्रा, स्वप्न और सुषुप्ति- इन सबका नाम ‘निद्रा’ है। इन सबके द्वारा जो तमोगुण का इस जीवात्मा को मुक्ति के साधन से वंचित रखकर जन्म-मृत्युरूप संसार में फँसाये रखना है- यही उसका प्रमाद, आलस्य और निद्रा के द्वारा जीवात्मा को बाँधना है।
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