श्रीमद्भगवद्गीता तत्त्वविवेचनी हिन्दी-टीका -जयदयाल गोयन्दका
त्रयोदश अध्याय
उत्तर- ‘सः’ पद ‘क्षेत्रज्ञ’ का वाचक है तथा ‘यः’ पद से उसका स्वरूप बतलाने का संकेत किया गया है। और आगे चलकर उसके प्रकृतिस्थ एवं वास्तविक दोनों स्वरूपों का वर्णन किया गया है- जैसे उन्नीसवें श्लोक में उसे ‘अनादि’ बीसवें में ‘सुख-दुःखों का भोक्ता’ एवं इक्कीसवें में ‘अच्छी-बुरी योनियों में जन्म ग्रहण करने वाला’ बतलाकर प्रकृतिस्थ पुरुष का स्वरूप बतलाया गया है और बाईसवें तथा सत्ताईसवें से तीसवें तक परमात्मा के साथ एकता करके उसके वास्तविक स्वरूप का निरूपण किया गया है। प्रश्न- ‘यत्प्रभावः’ पद से क्षेत्रज्ञ के विषय में क्या कहने का संकेत किया गया है और वह किन श्लोकों में कहा गया है? उत्तर- ‘यत्प्रभावः’ से क्षेत्रज्ञ का प्रभाव बतलाने के लिये संकेत किया गया है और उसे इकतीसवें से तैंतीसवें श्लोक तक बतलाया गया है। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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