श्रीमद्भगवद्गीता तत्त्वविवेचनी हिन्दी-टीका -जयदयाल गोयन्दका
एकादश अध्याय
उत्तर- इस कथन से भगवान् ने यह दिखलाया है कि गुरु, ताऊ, चाचे, मामे और भाई आदि आत्मीय स्वजनों को युद्ध के लिये तैयार देखकर तुम्हारे मन में जो कायरता का भाव आ गया है और उसके कारण तुम जो युद्ध से हटना चाहते हो- यह उचित नहीं है; क्योंकि यदि तुम युद्ध करके इनको न भी मारोगे तब भी ये बचेंगे नहीं। इनका तो मरण ही निश्चित है। जब मैं स्वयं इनका नाश करने के लिये प्रवृत्त हूँ, तब ऐसा कोई भी उपाय नहीं है जिससे इनकी रक्षा हो सके। इसलिये तुमको युद्ध से हटना नहीं चाहिये; तुम्हारे लिये तो मेरी आज्ञा के अनुसार युद्ध में प्रवृत्त होना ही हितकर है। प्रश्न- अर्जुन ने तो भगवान् के विराट् रूप में अपने और शत्रुपक्ष के सभी योद्धाओं को मरते देखा था, फिर भगवान् ने यहाँ केवल कौरवपक्ष के योद्धाओं की बात कैसे कही? उत्तर- अपने पक्ष के योद्धागणों का अर्जुन के द्वारा मारा जाना सम्भव नहीं है, अतएव ‘तुम न मारोगे तो भी वे तो मरेंगे ही’ ऐसा कथन उनके लिये नहीं बन सकता। इसीलिये भगवान् ने यहाँ केवल कौरवपक्ष के वीरों के विषय में कहा है। इसके सिवा अर्जुन को उत्साहित करने के लिये भी भगवान् के द्वारा ऐसा कहा जाना युक्तिसंगत है। भगवान् मानो यह समझा रहे हैं कि शत्रुपक्ष के जितने भी योद्धा हैं वे सब एक तरह से मरे ही हुए हैं; उन्हें मारने में तुम्हें कोई परिश्रम नहीं करना पड़ेगा। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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