श्रीमद्भगवद्गीता तत्त्वविवेचनी हिन्दी-टीका -जयदयाल गोयन्दका
एकादश अध्याय
दिवि सूर्यसहस्रस्य भवेद्युगपदुत्थिता ।
उत्तर- इसके द्वारा विराट्स्वरूप भगवान् के दिव्य प्रकाश को निरुपम बतलाया गया है। अभिप्राय यह है कि जिस प्रकार हजारों तारे एक साथ उदय होकर भी सूर्य की समानता नहीं कर कर सकते, उसी प्रकार हजार सूर्य यदि एक साथ आकाश में उदय हो जायँ तो उनका प्रकाश भी उस विराट्स्वरूप भगवान् के प्रकाश की समानता नहीं कर सकता। इसका कारण यह है कि सूर्यों का प्रकाश अनित्य, भौतिक और सीमित है; परन्तु विराट्स्वरूप भगवान् का प्रकाश नित्य, दिव्य, अलौकिक और अपरिमित है। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख
क्रम संख्या | विषय | पृष्ठ संख्या |