श्रीमद्भगवद्गीता तत्त्वविवेचनी हिन्दी-टीका -जयदयाल गोयन्दका
एकादश अध्याय
उत्तर- जिनसे युद्ध किया जाय, उन शस्त्रों का नाम ‘आयुध’ है और जो आयुध अलौकिक तथा तेजोमय हों उनको ‘दिव्य’ कहते हैं- जैसे भगवान् विष्णु के चक्र, गदा और धनुष आदि हैं। इस प्रकार के असंख्य दिव्य शस्त्र भगवान् ने अपने हाथों में उठा रखे थे, इसलिये उन्हें ‘दिव्यानेकोद्यतायुध’ कहा है। प्रश्न- ‘दिव्यमाल्याम्बरधरम्’ का क्या अर्थ है? उत्तर- जिसने बहुत उत्तम तेजोमय अलौकिक मालाएँ और वस्त्रों को धारण कर रखा हो, उसे ‘दिव्यमाल्याम्बरधर’ कहते हैं। विश्वरूप भगवान् ने अपने गले में बहुत-सी सुन्दर-सुन्दर तेजोमय अलौकिक मालाएँ धारण कर रखी थीं तथा वे अनेक प्रकार के बहुत ही उत्तम तेजोमय अलौकिक वस्त्रों से सुसज्जित थे, इसलिये उनके साथ यह विशेषण दिया गया है। प्रश्न- ‘दिव्यगन्धानुलेपनम्’ का क्या अर्थ है? उत्तर- चन्दन आदि जो लौकिक गन्ध हैं, उनसे विलक्षण अलौकिक गन्ध को ‘दिव्यगन्ध’ कहते हैं। ऐसे दिव्यगन्ध का अनुभव प्राकृत इन्द्रियों से न होकर दिव्य इन्द्रियों द्वारा ही किया जा सकता है; जिससे समस्त अंगों में इस प्रकार का अत्यन्त मनोहर दिव्यगन्ध लगा हो, उसको ‘दिव्यगन्धानुलेपन’ कहते हैं। प्रश्न- ‘सर्वाश्चर्यमयम्’ का क्या अर्थ है? उत्तर- भगवान् के उस विराट् रूप में उपर्युक्त प्रकार से मुख, नेत्र, आभूषण, शस्त्र, माला, वस्त्र और गन्ध आदि सभी आश्चर्यजनक थे; इसलिये उन्हें ‘सर्वाश्चर्यमय’ कहा गया है। प्रश्न - ‘अनन्तम्’ का क्या अभिप्राय है? उत्तर- जिसका कहीं अन्त, किसी ओर भी ओर-छोर न हो, उसे ‘अनन्त, कहते हैं। अर्जुन ने भगवान् के जिस विश्वरूप के दर्शन किये, वह इतना लम्बा-चौड़ा था जिसका कहीं भी अन्त न था; इसलिये उसको ‘अनन्त’ कहा है। प्रश्न- ‘विश्वतोमुखम्’ का क्या अभिप्राय है? उत्तर- जिसके मुख सब दिशाओं में हो, उसे ‘विश्वतोमुख’ कहते है। भगवान् के विराट् रूप में दिखलायी देने वाले असंख्य मुख समस्त विश्व में सब ओर थे, इसलिये उन्हें ‘विश्वतोमुख’ कहा है। प्रश्न- ‘देवम्’ पद का क्या अर्थ है और इसके प्रयोग का क्या अभिप्राय है? उत्तर- जो प्रकाशमय और पूज्य हो, उन्हें देव कहते हैं। यहाँ ‘देवम्’ पद का प्रयोग करके संजय ने यह भाव दिखलाया है कि परम तेजोमय भगवान् श्रीकृष्ण को अर्जुन ने उपर्युक्त विशेषणों से युक्त देखा। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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