श्रीमद्भगवद्गीता तत्त्वविवेचनी हिन्दी-टीका -जयदयाल गोयन्दका
एकादश अध्याय
उत्तर- रेडियो आदि यन्त्रों द्वारा एक काल में एक जगह दूर देश के वे ही शब्द और दृश्य सुने और देखे जा सकते हैं, जो एकदेशीय हों और उस समय वर्तमान हों। उनसे एक ही यन्त्र से एक ही काल में एक ही जगह सब देशों की घटनाएँ नहीं देखी-सुनी जा सकतीं। न उनसे लोगों के मन की बातें प्रत्यक्ष देखी जा सकती हैं और न भविष्य में होने वाली घटनाओं के दृश्य ही। इसके अतिरिक्त यहाँ के प्रसंग में ऐसी कोई बात नहीं है जिससे यह सिद्ध हो सके कि अर्जुन ने किसी यन्त्र द्वारा भगवान् के विश्वरूप को देखा था। अतएव ऐसा मानना सर्वथा युक्तिविरुद्ध है। हाँ, रेडियो आदि यन्त्रों के आविष्कार से आजकल के अविश्वासी लोगों को किसी सीमा तक समझाया जा सकता है कि जब रेडियो आदि भौतिक यन्त्रों द्वारा दूर देश की घटनाएँ सुनी-देखी जा सकती हैं, तब भगवान् की प्रदान की हुई योगशक्ति द्वारा उनके विश्वरूप का देखा जाना कौन बड़ी बात है? अवश्य ही यहाँ यह भी ध्यान रखना चाहिये कि यह भगवान् का कोई ऐसा मायामय मनोयोग नहीं था जिसके प्रभाव से अर्जुन बिना ही हुए ऐसी घटनाओं को स्वप्न के दृश्यों की भाँति देख रहे थे। अर्जुन जिस स्वरूप को देख रहे थे वह प्रत्यक्ष सत्य था और उसके देखने का एकमात्र साधन था- भगवत्-कृपा से मिली हुई योगशक्ति रूप दिव्य दृष्टि! प्रश्न- ‘ऐश्वरम्’ विशेषण के सहित ‘योगम्’ पद किसका वाचक है और उसे देखने के लिये कहने का क्या अभिप्राय है? उत्तर- अर्जुन को जिस रूप के दर्शन हुए थे, वह दिव्य था। भगवान् ने अपनी अद्भुत योगशक्ति से ही प्रकट करके उसे अर्जुन को दिखलाया था। अतः उसके देखने से ही भगवान् की अद्भुत योगशक्ति के दर्शन आप ही हो जाते हैं। इसीलिये यहाँ ‘ऐश्वरम्’ विशेषण के सहित ‘योगम्’ पद भगवान् की अद्भुत योगशक्ति के सहित उसके द्वारा प्रकट किये हुए भगवान् के विराट्स्वरूप का वाचक है; और उसे देखने के लिये कहकर भगवान् ने अर्जुन को अपने विराट्स्वरूप के दर्शन द्वारा योगशक्ति को देखने के लिये कहा है। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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