श्रीमद्भगवद्गीता तत्त्वविवेचनी हिन्दी-टीका -जयदयाल गोयन्दका
दशम अध्याय
वक्तुमर्हस्यशेषेण दिव्या ह्यात्मविभूतय: ।
उत्तर- समस्त लोकों में जो पदार्थ तेज, बल, विद्या, ऐश्वर्य, गुण और शक्ति आदि से सम्पन्न हैं, उन सबका वाचक यहाँ ‘दिव्याः’ विशेषण के सहित ‘आत्मविभूतयः’ पद है। तथा उनको पूर्णतया आप ही कहने में समर्थ हैं, इस कथन का यह अभिप्राय है कि वे सब विभूतियाँ आपकी हैं- इसलिये एवं आपके सिवा दूसरा कोई इनको पूर्णतया जानता ही नहीं-इसलिये भी आपके अतिरिक्त दूसरा कोई भी व्यक्ति उनका पूर्णतया वर्णन नहीं कर सकता; अतएव कृपया आप ही उनका वर्णन कीजिये। प्रश्न- जिन विभूतियों द्वारा आप इन समस्त लोकों को व्याप्त किये हुए स्थित हैं- इस कथन का क्या अभिप्राय है? उत्तर- इस कथन से अर्जुन ने यह भाव दिखलाया है कि मैं केवल इसी लोक में स्थित आपकी दिव्य विभूतियों का वर्णन नहीं सुनना चाहता; मैं आपकी उन समस्त विभिन्न विभूतियों का पूरा वर्णन सुनना चाहता हूँ, जिनसे विभिन्न रूपों में आप स्वर्गादि समस्त लोकों में परिपूर्ण हो रहे हैं। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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