दशम अध्याय
प्रश्न- भगवान् का कथन करना क्या है?
उत्तर- श्रद्धा-भक्तिपूर्वक भगवान् के नाम, गुण, प्रभाव, लीला और स्वरूप का कीर्तन और गायन करना तथा कथा-व्याखानादि द्वारा लोगों में प्रचार करना और उनकी स्तुति करना आदि सब भगवान् का कथन करना है।
प्रश्न- उपर्युक्त प्रकार से सब कुछ करते हुए नित्य सन्तुष्ट रहना क्या है?
उत्तर- प्रत्येक क्रिया करते हुए निरन्तर परम आनन्द का अनुभव करना ही ‘नित्य सन्तुष्ट रहना’ है। इस प्रकार सन्तुष्ट रहने वाले भक्त की शान्ति, आनन्द और सन्तोष का कारण केवल भगवान् के नाम, गुण, प्रभाव, लीला और स्वरूप आदि का श्रवण, मनन और कीर्तन तथा पठन-पाठन आदि ही होता है। सांसारिक वस्तुओं से उसके आनन्द और सन्तोष का कुछ भी सम्बन्ध नहीं रहता।
प्रश्न- उपर्युक्त प्रकार से सब कुछ करते हुए भगवान् में निरन्तर रमण करना क्या है?
उत्तर- भगवान् के नाम, गुण, प्रभाव, लीला, स्वरूप, तत्त्व और रहस्य का यथायोग्य श्रवण, मनन और कीर्तन करते हुए एवं उनकी रुचि आज्ञा और संकेत के अनुसार केवल उनमें प्रेम होने के लिये ही प्रत्येक क्रिया करते हुए, मन के द्वारा उनको सदा-सर्वदा प्रत्यक्षवत् अपने पास समझकर निरन्तर प्रेमपूर्वक उनके दर्शन, स्पर्श और उनके साथ वार्तालाप आदि क्रीडा करते रहना-यही भगवान् में निरन्तर रमण करना है।
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