द्वितीय अध्याय
प्रश्न- ‘गतासून्’ और ‘अगतासून्’ किनका वाचक है तथा ‘उनके लिये पण्डितजन शोक नहीं करते’ इस कथन का क्या अभिप्राय है?
उत्तर- जिनके प्राण चले गये हों, उनको ‘गतासु’ और जिनके प्राण न गये हों, उनको ‘अगतासु’ कहते हैं। ‘उनके लिये पण्डितजन शोक नहीं करते’ इस कथन से भगवान् ने यह भाव दिखलाया है कि जिस प्रकार तुम, अपने पिता और पितामह आदि मरकर परलोक में गये हुए पितरों के लिये चिन्ता कर रहे हो कि युद्ध के परिणाम में हमारे कुल का नाश हो जाने पर वर्ण संकरता फैल जाने से हमारे पितरलोग नरक में गिर जायँगे इत्यादि। तथा सामने खड़े हुए बन्धु-बान्धवों के लिये भी चिन्ता कर रहे हो कि इन सबके बिना हम राज्य और भोगों को लेकर ही क्या करेंगे। कुल का संहार हो जाने से स्त्रियाँ भ्रष्ट हो जायँगी इत्यादि।
इस प्रकार की चिन्ता पण्डित लोग नहीं करते। क्योंकि पण्डितों की दृष्टि में एक सच्चिदानन्दघन ब्रह्म ही नित्य और सत् वस्तु है, उससे भिन्न कोई वस्तु ही नहीं है, वही सबका आत्मा है, उसका कभी किसी प्रकार भी नाश नहीं हो सकता और शरीर अनित्य है, वह रह नहीं सकता तथा आत्मा और शरीर का संयोग-वियोग व्यावहारिक दृष्टि से अनिवार्य होते हुए भी वास्तव में स्वप्न की भाँति कल्पित है; फिर वे किसके लिए शोक करें और क्यों करें। किंतु तुम शोक कर रहे हो, इसलिये जान पड़ता है तुम पण्डित नहीं हो, केवल पण्डितों की-सी बातें ही कर रहे हो।
|