श्रीमद्भगवद्गीता तत्त्वविवेचनी हिन्दी-टीका -जयदयाल गोयन्दका
द्वितीय अध्याय
उत्तर- दोनों सेनाओं में अपने चाचा, ताऊ, बन्धु-बान्धव और आचार्य आदि को देखते ही उनके नाश की आशंका से विषाद करते हुए अर्जुन ने जो प्रथम अध्याय के अट्ठाईसवें, उनतीसवें और तीसवें श्लोकों में अपनी स्थिति का वर्णन किया है, पैंतालीसवें श्लोक में युद्ध के लिये तैयार होने की क्रिया पर शोक प्रकट किया है और सैंतालीसवें श्लोक में जो संजय ने उनकी स्थिति का वर्णन किया है, उनको लक्ष्य करके यहाँ भगवान् ने यह बात कही है कि ‘जिनके लिये शोक नहीं करना चाहिये, उनके लिये तुम शोक कर रहे हो।’ यहीं से भगवान् के उपदेश का उपक्रम होता है, जिसका उपसंहार 18।66 में हुआ है। प्रश्न- अर्जुन के कौन-से वचनों को लक्ष्य करके भगवान् ने यह कहा है कि तुम पण्डितोंसरीखी बातें कर रहे हो? उत्तर- पहले अध्याय में इकतीसवें से चौवालीसवें और दूसरे अध्याय में चौथे से छठे श्लोक तक अर्जुन ने कुल के नाश से उत्पन्न होने वाले महान् पाप का वर्णन करते हुए अहंकारपूर्वक दुर्योधनादि की नीचता और अपनी धर्मज्ञता की बातें कहकर अनेकों प्रकार की युक्तियों से युद्ध का अनौचित्य सिद्ध किया है; उन्हीं सब वचनों को लक्ष्य करके भगवान् ने यह कहा है कि तुम पण्डितों-सरीखी बातें कह रहे हो। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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