श्रीमद्भगवद्गीता तत्त्वविवेचनी हिन्दी-टीका -जयदयाल गोयन्दका
द्वितीय अध्याय
सञ्जय उवाच प्रश्न- इस श्लोक का क्या अभिप्राय है? उत्तर- इस श्लोक में संजय ने धृतराष्ट्र से यह कहा है कि उपर्युक्त प्रकार से भगवान् के शरण होकर शिक्षा देने के लिये उनसे प्रार्थना करके और अपने विचार प्रकट करके अर्जुन यह कहकर कि ‘मैं युद्ध नहीं करूँगा; चुप हो गये। प्रश्न- ‘गोविन्द’ शब्द का क्या अर्थ है? उत्तर - ‘गोभिर्वेदवाक्यैर्विद्यते लभ्यते इति गोविन्दः’ इस व्युत्पत्ति के अनुसार वेदवाणी के द्वारा भगवान् के स्वरूप की उपलब्धि होती है, इसलिये उनका नाम ‘गोविन्द’ है। गीता में भी कहा है- ‘वेदैश्च सर्वैरहमेव वेद्यः’[1]- ‘सम्पूर्ण वेदों के द्वारा जानने योग्य मैं ही हूँ।’ |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ 15।15
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