श्रीमद्भगवद्गीता तत्त्वविवेचनी हिन्दी-टीका -जयदयाल गोयन्दका
द्वितीय अध्याय
प्रश्न- इस श्लोक में अर्जुन के कथन का क्या भाव है? उत्तर- पूर्व श्लोक में अर्जुन ने भगवान् से शिक्षा देने के लिये प्रार्थना की है, इसलिये यहाँ यह भाव प्रकट करते हैं कि आपने पहले मुझे युद्ध करने के लिये कहा है; किंतु उस युद्ध का अधिक-से-अधिक फल विजय प्राप्त होने पर इस लोक में पृथ्वी का निष्कण्टक राज्य पा लेना है और विचार करने पर यह बात मालूम होती है कि इस पृथ्वी के राज्य की तो बात ही क्या, यदि मुझे देवताओं का आधिपत्य भी मिल जाय तो वह भी मेरे इस इन्द्रियों को सुखा देने वाले शोक को दूर करने में समर्थ नहीं है। अतएव मुझे कोई ऐसा निश्चित उपाय बतलाइये जो मेरी इन्द्रियों को सुखाने वाले शोक को दूर करके मुझे सदा के लिये सुखी बना दे। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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