श्रीमद्भगवद्गीता तत्त्वविवेचनी हिन्दी-टीका -जयदयाल गोयन्दका
नवम अध्याय
पत्रं पुष्पं फलं तोयं यो मे भक्त्या प्रयच्छति ।
उत्तर- इससे भगवान् ने यह भाव दिखलाया है कि किसी भी वर्ण, आश्रम और जाति का कोई भी मनुष्य पत्र, पुष्प, फल, जल आदि मेरे अर्पण कर सकता है। बल, रूप, धन, आयु, जाति, गुण और विद्या आदि के कारण मेरी किसी में भेदबुद्धि नहीं है; अवश्य ही अर्पण करने वाले का भाव विदुर और शबरी आदि की भाँति सर्वथा शुद्ध और प्रेमपूर्ण होना चाहिये। प्रश्न- पूजा की अनेक सामग्रियों में से केवल पत्र, पुष्प, फल और जल के ही नाम लेने का क्या अभिप्राय है? और इन सबका भक्तिपूर्वक भगवान् को अर्पण करना क्या है? उत्तर- यहाँ पत्र, पुष्प, फल और जल का नाम लेकर यह भाव दिखलाया गया है कि जो वस्तु साधारण मनुष्यों को बिना किसी परिश्रम, हिंसा और व्यय के अनायास मिल सकती है- ऐसी कोई भी वस्तु भगवान् के अर्पण की जा सकती है। भगवान् पूर्णकाम होने के कारण वस्तु के भूखे नहीं हैं, उनको तो केवल प्रेम की ही आवश्यकता है। ‘मुझ-जैसे साधारण-से-साधारण मनुष्य द्वारा अर्पण की हुई छोटी-से-छोटी वस्तु भी भगवान् सहर्ष स्वीकार कर लेते हैं, यह उनकी कैसी महत्ता है!’ इस भाव से भावित होकर प्रेमविहल चित्त से किसी भी वस्तु को भगवान् के समर्पण करना, उसे भक्तिपूर्वक भगवान् के अर्पण करना है। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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