नवम अध्याय
प्रश्न- यहाँ ‘ते’ पद किन मनुष्यों को लक्ष्य करता है, तथा उनका भगवान् को तत्त्व से नहीं जानना क्या है?
उत्तर- यहाँ ‘ते’ पद पूर्वश्लोक में वर्णित प्रकार से अन्य देवताओं की पूजा द्वारा अविधिपूर्वक भगवान् की पूजा करने वाले सकाम मनुष्यों को लक्ष्य करता है तथा सोलहवें से उन्नीसवें श्लोक तक भगवान् के गुण, प्रभावसहित जिस स्वरूप का वर्णन हुआ है, उसको न जानने के कारण भगवान् को सब यज्ञों के भोक्ता और समस्त लोकों के महान् ईश्वर न समझना- यही उनको तत्त्व से न जानना है।
प्रश्न- ‘अतः’ पद का क्या अभिप्राय है और उसके साथ ‘च्यवन्ति’ क्रिया का प्रयोग करके क्या भाव दिखलाया गया है?
उत्तर- ‘अतः’ पद हेतु वाचक है। इसके साथ ‘च्यवन्ति’ क्रिया के प्रयोग का यहाँ यह अभिप्राय है कि इसी कारण अर्थात् भगवान् को तत्त्व से न जानने के कारण ही वे मनुष्य भगवत्प्राप्ति रूप अत्यन्त उत्तम फल से वंचित रहकर स्वर्गप्राप्ति रूप अल्प फल के भागी होते हैं और आवागमन के चक्कर में पड़े रहते हैं।
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