श्रीमद्भगवद्गीता तत्त्वविवेचनी हिन्दी-टीका -जयदयाल गोयन्दका
प्रथम अध्याय
उत्तर- अर्जुन कहते हैं कि विपक्ष में स्थित इन धृतराष्ट्रपुत्रों को और उनके साथियों को मारने से इस लोक और परलोक में हमारी कुछ भी इष्टसिद्धि नहीं होगी और जब इच्छित वस्तु ही नहीं मिलेगी तब प्रसन्नता तो होगी ही कैसे। अतएव किसी दृष्टि से भी मैं इनको मारना नहीं चाहता। प्रश्न- स्मृतिकारों ने तो स्पष्ट शब्दों में कहा है- ‘अपना अनिष्ट करने के लिये आते हुए आततायी को बिना विचारे ही मार डालना चाहिये। आततायी के मारने से मारने वाले को कुछ भी दोष नहीं होता।’ |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ मनु. 8। 350-51
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