श्रीमद्भगवद्गीता तत्त्वविवेचनी हिन्दी-टीका -जयदयाल गोयन्दका
प्रथम अध्याय
उत्तर- करुणाजनित कायरता से अर्जुन की बड़ी शोचनीय स्थिति हो गयी है, उसी का वर्णन करते हुए वे कह रहे हैं कि ‘मेरे सारे अंग अत्यन्त शिथिल हो गये हैं, हाथ ऐसे शक्तिशून्य हो रहे हैं कि उनसे गाण्डीव धनुष को चढ़ाकर बाण चलाना तो दूर रहा, मैं उसको पकड़े भी नहीं रह सकता, वह हाथ से छूटा जा रहा है। युद्ध के भावी परिणाम की चिन्ता ने मेरे मन में इतनी जलन पैदा कर दी है कि उसके कारण मेरी चमड़ी भी जल रही है और भीषण मानसिक पीड़ा के कारण मेरा मन किसी बात पर क्षण भर भी स्थिर नहीं हो रहा है। तथा इसके परिणामस्वरूप मेरा मस्तिष्क भी घूमने लगा है, ऐसा मालूम होता है कि मैं अभी-अभी मूर्च्छित होकर गिर पडॅूंगा।’ प्रश्न- अर्जुन का गाण्डीव धनुष कैसा था? और वह उसे कैसे मिला था? उत्तर- अर्जुन का गाण्डीव धनुष दिव्य था, उसका आकार ताल के समान था।[1] गाण्डीव का परिचय देते हुए बृहन्नला के रूप में स्वयं अर्जुन ने उत्तरकुमार से कहा था- ‘यह अर्जुन का जगत्प्रसिद्ध धनुष है। यह स्वर्ण से मढ़ा हुआ, सब शस्त्रों में उत्तम और लाख आयुधों के समान शक्तिमान् है। इसी धनुष से अर्जुन ने देवता और मनुष्यों पर विजय प्राप्त की है। इस विचित्र रंग-बिरंगे अद्भुत कोमल और विशाल धनुष का देवता, दानव और गन्धर्वों ने दीर्घकाल तक आराधन किया है, इस परमदिव्य धनुष को ब्रह्मा जी ने एक हजार वर्ष, प्रजापति ने पाँच सौ तीन वर्ष, इन्द्र ने पचासी वर्ष, चन्द्रमा ने पाँच सौ वर्ष और वरुणदेव ने सौ वर्ष तक रखा था।’[2] यह अर्जुन को खाण्डव-वन में जलाने के समय अग्निदेव ने वरुण से दिलाया था।[3] |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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