पंचम अध्याय
अध्याय का नाम- इस पंचम अध्याय में कर्मयोग-निष्ठा और सांख्ययोग-निष्ठा का वर्णन है, सांख्य-योग का ही पर्यायवाची शब्द ‘संन्यास’ है। इसलिये इस अध्याय का नाम ‘कर्म-संन्यास योग’ रखा गया है।
अध्याय का संक्षेप- अर्जुन का प्रश्न है। दूसरे में प्रश्न का उत्तर देते हुए भगवान् ने सांख्ययोग और कर्मयोग दोनों को ही कल्याण कारक बतलाकर ‘कर्म संन्यास’ की अपेक्षा ‘कर्मयोग’ को श्रेष्ठ बतलाया है, तीसरे में कर्मयोगी का महत्त्व बतलाकर चौथे और पाँचवें में ‘सांख्ययोग’ और ‘कर्मयोग’- दोनों का फल एक ही होने के कारण, दोनों की एकता का प्रतिपादन किया है। छठे में कर्मयोग के बिना सांख्ययोग का सम्पादन कठिन बतलाकर कर्मयोग का फल अविलम्ब ही ब्रह्म की प्राप्ति होना कहा है। सातवें में कर्मयोगी की निर्लिप्तता का प्रतिपादन करके आठवें और नवें में सांख्ययोगी के अकर्तापन का निर्देश किया है। तदनन्तर दसवें और ग्यारहवें में भगवदर्पणबुद्धि से कर्म करने वाले की और कर्म-प्रधान कर्मयोगी की प्रशंसा करके कर्मयोगियों के कर्मों को आत्मशुद्धि में हेतु बतलाया है और बारहवें में कर्मयोगियों को नैष्ठि की शान्ति की एवं सकामभाव से कर्म करने वालों को बन्धन की प्राप्ति होती है, ऐसा कहा है।
|