द्वितीय अध्याय
प्रश्न- ‘भाषा’ शब्द का अर्थ ‘वाणी’ न करके ‘लक्षण’ कैसे किया?
उत्तर- स्थिर बुद्धि पुरुष की वाणी के विषय में ‘किं प्रभाषेत’ अर्थात् वह कैसे बोलता है- इस प्रकार अलग प्रश्न किया गया है, इस कारण यहाँ ‘भाषा’ शब्द का अर्थ ‘वाणी’ न करके ‘भाष्यते कथ्यते अनया इति भाषा’- जिसके द्वारा वस्तु का स्वरूप् बतलाया जाय, उस लक्षण का नाम ‘भाषा’ है- इस व्युत्पत्ति के अनुसार ‘भाषा’ का अर्थ ‘लक्षण’ किया गया है; प्रचलित भाषा में भी ‘परिभाषा’ शब्द लक्षण का ही पर्याय है। उसी अर्थ में यहाँ ‘भाषा’ पद का प्रयोग किया गया है।
प्रश्न- स्थिर बुद्धि पुरुष कैसे बोलता है? कैसे बैठता है? कैसे चलता है? इन प्रश्नों में क्या साधारण बोलने, बैठने और चलने की बात है या और कुछ विशेषता है?
उत्तर- परमात्मा को प्राप्त सिद्ध पुरुष की सभी बातों में विशेषता होती है; अतएव उसका साधारण बोलना, बैठना और चलना भी विलक्षण ही होता है। किंतु यहाँ साधारण बोलने, बैठने और चलने की बात नहीं है; यहाँ बोलने से तात्पर्य है- उसके वचन मन के किन भावों से भावित होते हैं? बैठने से तात्पर्य है- व्यवहार रहित काल में उसकी कैसी अवस्था होती है? और चलने से तात्पर्य है- उसके आचरण कैसे होते हैं?
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