श्रीमद्भगवद्गीता तत्त्वविवेचनी हिन्दी-टीका -जयदयाल गोयन्दका
अष्टादश अध्याय
उत्तर- इस कथन से यह भाव दिखलाया गया है कि प्रत्येक मनुष्य, चाहे वह किसी भी वर्ण या आश्रम में स्थित हो, अपने कर्मों से भगवान् की पूजा करके परमसिद्धिरूप परमात्मा को प्राप्त कर सकता है; परमात्मा को प्राप्त करने में सबका समान अधिकार है। अपने शम, दम आदि कर्मों को उपर्युक्त प्रकार से भगवान् के समर्पण करके उनके द्वारा भगवान् की पूजा करने वाला ब्राह्मण जिस पद को प्राप्त होता है, अपने शूरवीरता आदि कर्मों के द्वारा भगवान् की पूजा करने वाला क्षत्रिय भी उसी पद को प्राप्त होता है; उसी प्रकार अपने कृषि आदि कर्मों द्वारा भगवान् की पूजा करने वाला वैश्य तथा अपने सेवा-सम्बन्धी कर्मों द्वारा भगवान् की पूजा करने वाला शूद्र भी उसी परम पद को प्राप्त होता है। अतएव कर्मबन्धन से छूटकर परमात्मा को प्राप्त करने का यह बहुत ही सुगम मार्ग है। इसलिये मनुष्य को उपर्युक्त भाव से अपने कर्तव्य-पालन द्वारा परमेश्वर की पूजा करने का अभ्यास करना चाहिये। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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