भागवत सुधा -करपात्री महाराज पृ. 35

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भागवत सुधा -करपात्री महाराज

सबसे बड़ी समस्या इन टेपों को लिपिबद्ध करने की थी। संयोग से परमपूज्य स्वामी जीे के प्रिय शिष्य स्वामी निश्चलानन्द सरस्वती जी ने हमारी प्रार्थना स्वीकार कर इन्हें लिपिबद्ध कर इसकी प्रेस कापी बना दी। उन्होंने परिश्रम कर अपना अमूल्य समय लगा कर चार महीनों में यह कार्य किया है। इस कार्य में उनका सहयोग स्वामी चिन्मयानन्द जी ने किया। हम इन दोनों महात्माओं को प्रणाम करते हुये इनके प्रति अपना आभार व्यक्त करते हैं। परमपूज्य श्री चरणों ने इसकी प्रेस कापी देखी थी और जल्द से जल्द छपवाने की इच्छा व्यक्त की थी। कई कारणों से उनके रहते-रहते यह नहीं हो सका, जिसका हमें हार्दिक खेद है। सुविज्ञ पाठकों को यह विदित ही है कि पूज्य चरणों ने ‘वेदार्थ पारिजात’ नामक वेद भाष्य भूमिका भाग (दो खण्ड) में अब तक के पाश्चात्य एवं सुधारवादी पौरस्त्य विद्वानों की शंकाओं का संकलन कर सनातन मर्यादाओं के सन्दर्भ में उनका समाधान प्रस्तुत कर दिया है। उन्होंने यजुर्वेद के 40 अध्याओं पर भाष्य लिखा। ऋग्वेद का एक मंडल ही वे लिख पाये थे कि उन्हें शिव-सायुज्य की प्राप्ति हो गयी। अब इन भाष्यों का छपाना एक महत्त्वपूर्ण कार्य है।
श्री सायणाचार्य जी के बाद, जिनका समय 16 वीं शताब्दी माना जाता है, कोई भी प्रामाणिक वेदभाष्य नहीं लिखा गया। पूज्य चरणों ने अपनी अलौकि दैवी प्रतिभा के बल पर अपनी ऋतम्भरा प्रज्ञा द्वारा वेदों का भाष्य लिखा है। उनके जीवन काल में ही उनके द्वारा लिखे गये यजुर्वेद के दो अध्यायों का भाष्य छपवाने की योजना बन चुकी थी और उनकी स्वीकृत भी प्राप्त हो चुकी थी। सामान्य व्यक्ति भी वेद की पवित्र, गम्भीर एवं गूढ़ वाणी का अर्थ समझ सके, इसके लिये यह आवश्यक समझा गया कि मन्त्रों का हिन्दी अनुवाद पूज्य श्री के माध्य भाष्य के हिन्दी अनुवाद के साथ छापा जाय। महाराज श्री की आज्ञानुसार हम दो अध्यायों का सानुवाद भाष्य अति शीघ्र ही प्रकाशित करा रहे हैं। लहभग 600 पृष्ठों की यह पुस्तकअपने ढंग की यह अद्वितीय पुस्तक होगी। शेष यजुर्वेद भाष्य तथा ऋग्वेद का एक मण्डल का भाष्य छपना भी आवश्यक है। सरकार, विद्वत्-मंडली एवं परम पूज्य श्री चरणों के भक्तों का यह पावन कर्तव्य है कि वे इस महान कार्य में हमारा सहयोग करें, जिससे हम इस पवित्रतम कार्य को अति शीघ्र ही सम्पादित कर सकें। पूज्य चरणों की शिवसायुज्य प्राप्ति के अनन्तर भाष्य-संदर्भ में यह हमारा प्रथम प्रकाशन होगा। इसलिए हम सम्बन्द्ध लोगों से सहयोग का अनुरोध करते हैं। पूज्य स्वामी अखण्डानन्द सरस्वती जी महाराज ने हमारी प्रार्थना पर परम पूज्य श्री चरणों का अत्यन्त भाव मय परिचय लिखा है।

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संबंधित लेख

भागवत सुधा -करपात्री महाराज
क्रमांक पाठ का नाम पृष्ठ संख्या
प्रथम-पुष्प
1. निगमकल्परोर्गलितं फलम् 37
2. पुरुषार्थचतुष्टयप्रदायक निगमकल्पतरु 38
3. रसमालयम् 38
4. आत्माराम का भी भगवद्गुणगणार्णव में अवगाहन 38
5. देव दुर्लभ श्रीमद्भागवत: 39
6. युगधर्मों का निरूपण 42
7. विद्या-अविद्या का समुच्चय 44
8. भगवन्नाम-संकीर्तन 48
9. माहात्म्य 51
10. वस्तु-तत्व के साक्षात्कार के लिए श्रवण, मनन और निदिध्यासन अपेक्षित 54
11. ‘जन्माद्यस्य यतोऽन्वयात्’ की भूमिका 54
12. भगवत्तत्व का अनुसंधान- छान्दोग्य शैली में 55
13. भगवतत्व का अनुसंधान -तैत्तिरीय शैली में 56
14. पैंगलोपनिषत् पुराण और महाभारत की शैली में 56
15. परब्रह्म के निःश्वासभूत वेदों की अपौरुषैयता 57
16. वेदों के प्रतिपाद्य सगुण या निर्गुण 59
17. ईश्वर-सिद्धि 64
18. नास्तिकों के भी उद्धार का उपक्रम 64
19. सर्वात्मभाव 68
20. भगवान् जगत के अभिन्ननिमित्तोपादानकारण 70
द्वितीय-पुष्प
1. ‘जन्माद्यस्य यतः’ 71
2. 'अन्वयत्', 'इतरत:', 'च' 72
3. 'अभिज्ञः' 74
4. ‘स्वराट्’ 74
5. ‘तेने ब्रह्महृदा य आदि कवये मुह्यन्ति यत् सूरयः’ 75
6. ‘तेजोवारिमृदां यथा विनिमय: 76
7. ऋषि-सूत-संवाद 78
8. श्रीशुक-वन्दना 82
9. शुकमनमोहक ‘बर्हापीडं’ श्लोक 85
10. 'बर्हापीडं' 87
11. ‘नटवर- वपुः’ 88
12. ‘कर्णयोः कर्णिकारं’ 90
13. ‘विभ्रद्वासः कनककपिशं’ 91
14. ‘रन्ध्रान्वेणोरधरसुधया पूरयन्’ 92
15. ‘वृन्दारण्यं स्वपदरमणं’ 94
16. अकारणकरुण करुणावरुणालय-‘भगवान्’ 95
तृतीय-पुष्प
1. प्रतिपद्य और प्रतिपादक की परब्रह्मरूपता 99
2. परम धर्म 111
3. मोक्ष पर्यवसायी धर्म, अर्थ और काम 118
4. ‘तत्त्व’ की तात्त्विक परिभाषा 123
चतुर्थ-पुष्प
1. भगवान व्यास को देवर्षि नारद की प्रेरणा 127
2. गुणगण भगवान् के उपकारक नहीं 139
3. भगवदाराधन की विधि 143
4. ‘तथा परमहंसानां’ के साथ ‘परित्राणाय साधूनां’ की संगति 154
पंचम-पुष्प
1. शुक-समागम 159
2. अप्रमत्त के लिये अति सुगम भगवत्प्राप्ति 174
3. नाम-धाम-प्राणायाम और ध्यान से भगवत्प्राप्ति 175
4. ‘तेषां के योगवित्तमाः’ का समाधान 183
5. ‘न किश्चिदपि चिन्तयेत्’ का तात्त्विक अभिप्राय 188
षष्ठ-पुष्प
1. ब्रह्म-नारद संवाद 190
2. माया संतरण का अमोघ उपाय 191
3. प्रह्लाद चरित 196
4. शरणागति 205
5. शरण्य की शरणागति 208
6. शरण्य का स्वरूप 208
7. शरणागति एक बार या बार-बार? 208/2
8. श्री जी 209
सप्तम-पुष्प
1. राजा बलि के पूर्व जन्म का वृतान्त 216
2. भगवान वामन को आविर्भाव 223
3. राजा बलि की सत्यनिष्ठा 228
4. धर्मनिरपेक्ष या धर्मसापेक्ष? 228
5. धन बड़ा या धनवान ? 230
6. ‘धन नहीं धनवान् बड़ा’ 231
अष्टम-पुष्प
1. वेदान्तवेद्य पूर्णतम पुरुषोत्तम ‘श्रीराम’ 233
2. ‘आदि कर्ता स्वयं प्रभु’ श्रीराम 235
3. लताओं तक को प्रेम प्रदान करने वाले ‘श्रीराम’ 236
4. प्रभुओं के भी प्रभु ‘श्रीराम’ 238
5. धर्म रक्षक ‘श्रीराम’ 239
6. लीला पुरुषोत्तम ‘श्रीकृष्ण’ 239
7. श्रीवृन्दावन, गोपांगनाएँ; श्रीकृष्ण और राधा का तात्विक स्वरूप 240
8. श्रीकृष्णचन्द्र परमानन्दकन्द का अद्भुत प्राकट्य 242
9. सुषमासारसर्वस्त्र ‘श्रोहरि’ 242
10. अनाघ्रात अनपहत-अनुत्पन्न-अनुपहत और अदृष्टाद्भुत पंकज ‘श्रीकृष्ण’ 242
11. सत्यज्ञानानन्तान्दमात्रैकरसमूर्ति ‘श्रीकृष्ण’ 242/2
12. भगवान् के जन्म और कर्म दिव्य हैं, वे स्वयं अप्राकृत हैं 244
13. श्री वृन्दावनधाम 248
14. मृद्भक्षण लीला 250
15. दामोदरलीला 251
16. निराकार से साकार 252
17. भावुक के दु्रत चित्त पर भगवान् की अभिव्यक्ति ‘भक्ति’ 254
18. श्रीकृष्णचन्द्र और श्रीराधाचन्द्र 255
19. आसन और आशयरूप बाह्यप्रपच्च और पंचकोश के तादात्म्य का त्यागकर श्रीकृष्णचन्द्र परमानन्द कन्द के स्वागत में तन्मय द्वारकास्थ पट्टमहिषीगण 257
20. कथा श्रवण से वैराग्य एवं विज्ञानोपलब्धि 258
21. भगवद्गुणानुवाद से भगवद्भक्ति 259
22. अंतिम पृष्ठ 259

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