विषय सूचीभागवत सुधा -करपात्री महाराजअष्टम-पुष्प 7. श्रीवृन्दावन, गोपांगनाएँ; श्रीकृष्ण और राधा का तात्विक स्वरूपगोपांगनाओं के कानो में कुण्डल क्या है? कुवलय अर्थात कमल कुड्मल्। आँखों में अञ्जन कौन हैं? जैसे गोपांगना कंकड़-पत्थर के आभूषणों को नहीं धारण करतीं, वैसे ही करिखा आँखों में नहीं लगातीं। जैसे मदनमोदन श्याम सुन्दर व्रजेन्द्रनन्दन ही कुवलय होकर गोपांगनाओं के कुण्डल बने हैं, वैसे ही अञ्जन बनकर उनकी आँखों की शोभा बढ़ा रहे हैं। उरःस्थल में जो महेन्द्रनीलमणि की माला है, वह भी श्यामसुन्दर ब्रजेन्द्रनन्दन मदमोहन ही हैं। उरोजों मैं मृगमद भी श्यामसुन्दर मदन मोहन श्रीकृष्ण ही हैं। वृन्दावन की तरुणियों के अखिमण्डन श्रीकृष्ण परमानन्दकन्द ही हैं। अर्थात् इन गोपांगना जनों के, विशेषकर राधारानी वृषभानुनन्दिनी के हृदय में वही श्यामरस भरपूर है। वे उसी श्याम तेज की ही महेन्द्रनीलमणिमाला और श्याम तेज का ही सम्पूर्ण अलंकार धारण करती हैं। इधर श्यामसुन्दर के दामिनीद्युतिविनिन्दक पीताम्बर कौन हैं, जानते हो? वही उनके बाहर भी। श्याम तेज के भीतर गौर तेज और श्यामतेज के बाहर भी गौर तेज ही है। उसी गौर तेज परवेष्टित, दामिनीद्युतिविनिन्दक पीताम्बर राधारानी वृषभानुनन्दिनी का ही मंगलमय स्वरूप है। इस तरह से बाह्याभ्यन्तरा ह्यजः[1] बाहर भी वही और भीतर भी वही, सब कुछ वही। श्याम तेज के बाहर भीतर गौर तेज और गौर-तेज के बाहर-भीतर श्याम तेज। इस प्रकार श्रीकृष्ण माने राधा-कृष्ण। राधा बल्लभ मंदिर में केवल एक ही भगवान की मूर्ति है। वामांग में चन्द्रिका रहती है। एक ही स्वरूप में राधाकृष्ण दोनों हैं। राधारमण में भी एक रूप है, एक ही में दोनों हैं। राधाकृष्ण माने श्याम तेज संवलित गौर तेज और गौर संबलित श्याम तेज। दोनों तेज एक ही स्वरूप में मिला हुआ है। ऐसे श्रीकृष्ण का प्राकट्य होता है।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ मुण्डाकोपनिषद् 2.1.2
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