विषय सूचीभागवत सुधा -करपात्री महाराजअष्टम-पुष्प 3. लतओं तक को प्रेम प्रदान करने वाले ‘श्रीराम’न च सर्पन्ति सत्त्वानि व्याला न प्रसरन्ति च। (सुमंत्र ने कहा- राम के वन को प्रस्थित होने पर मैं जब लौटा रथ के घोडे़ उष्ण आँसू गिराते हुए मार्ग पर चलने को प्रवृत्त नहीं हुए। महाराज! महाव्यसन से दुःखित आपके देश के वृक्ष, पुष्पों, पल्लवों, अंकुरों तथा पुष्प-मुकुलों के साथ परिम्लान से हो गये हैं। नदियों, सरोवरों तथा छोटे सरोवरों के जल तप्त एवं शुष्क हो गये हैं। वनों एवं उपवनों के पत्ते सूख गये हैं। कोई प्राणी आहार के लिये भी गमनागमन नहीं कर रहे हैं। व्याल भी प्रसरण नहीं कर रहे हैं। सारा वन राम शोक से अभिभूत होकर निःशब्द-सा हो रहा है। जल और स्थल के सभी पुष्प पहले के समान सौन्दर्य तथा सौगन्ध्य से युक्त नहीं हैं। सारे उद्यान विहंगादि हीन हो शून्य से प्रतीत होते हैं। आराम और क्रीड़ाद्यान भी अभिरामता शून्य हो रहे हैं। इस तरह अचेतन वृक्ष और लताएँ भी राम प्रेम से व्याप्त हैं।) |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ वाल्मीकि रामायण 2.59.4.6
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